कुछ दिन पहले मैंने प्रभात खबर में आश्चर्यचकित करनेवाली खबरों को पढ़ा. खबर से ज्यादा तकलीफ उसमें प्रकाशित चित्रों को देख कर हुई. वह इसलिए क्योंकि उनमें से किसी बच्चे के हाथ जले थे, तो किसी के पैर में घाव हो गये थे और उनमें कीड़े पड़े थे. यह बच्चे किसी और के नहीं, बल्कि बिरहोर जाति के थे. उनमें से कई बच्चे बिना स्वेटर के थे.
वे आज भी लावारिस की तरह जीवन जीने को मजबूर हैं. दिन भर के काम की थकान के चलते नंगे बदन जंगलों में पेड़ों के नीचे या फिर सड़कों के किनारे सोने को मजबूर हैं.
स्थिति यह भी है कि हाड़ कंपा देनेवाली इस ठंड में कई लोगों की जानें तो बिना इलाज के ही चली जाती हैं. न उनके पास राशन कार्ड है, न जन्म प्रमाण पत्र और न ही नागरिकता की पहचान करानेवाला मतदाता पहचान पत्र, फिर भी इस राज्य में उनके नाम पर राजनीति हो रही है. राजकोष से उनके नाम पर मिलनेवाली राशि कहां और किस मद में खर्च हो जाती है, किसी को पता नहीं चलता. ये बिरहोर भले ही भारत में जन्मे हैं, लेकिन कायदे से देखें तो यहां के राजनेताओं ने इन्हें झारखंड में रहने के लायक भी नहीं छोड़ा है. न तो इन्हें ठीक से शिक्षा दी जा रही है और न ही भोजन के लिए सस्ते में मिलनेवाले अनाज ही मुहैया कराये जा रहे हैं. अगर गलती से बड़े नेता या कोई अधिकारी झाड़ू छू देता है, तो वह खबर बन जाता है, लेकिन झारखंड में आये दिन इन बिरहोर जाति के लोगों को नित नयी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, तो किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. ये समझ में नहीं आता कि आखिर इस जाति के बच्चों ने क्या गलती की है कि इन्हें इस तरह की सजा दी जा रही है! क्या यहां की सरकारें इनके प्रति पूरी तरह से उदासीन हो गयी हैं?
किरण कुमारी, मटवारी, हजारीबाग