Advertisement
दक्षिण सेतु के बिना अधूरा है भारत
तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा भाषाएं बांधती हैं. वे सेतुबंध का काम करती हैं, पर हमने उन्हें द्वीपों में बदल दिया. हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं करते, तो बाकी का क्या करेंगे? अगर भारत सच में हमारी माता है, तो उस माता की सभी भाषाएं हमारी मां-बोलियां, हमारी मातृभाषाएं ही तो हुईं? सिर्फ मैं […]
तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
भाषाएं बांधती हैं. वे सेतुबंध का काम करती हैं, पर हमने उन्हें द्वीपों में बदल दिया. हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं करते, तो बाकी का क्या करेंगे? अगर भारत सच में हमारी माता है, तो उस माता की सभी भाषाएं हमारी मां-बोलियां, हमारी मातृभाषाएं ही तो हुईं?
सिर्फ मैं श्रेष्ठ और बाकी सब मेरा अनुसरण करें, यह दंभ बहुत घातक होता है. अगर भारत केवल तुलसी और बाल्मीकि ही है, तो क्या बाकी भारत भी उत्तर भारत हो जाये?
विविधता में एकता की बात करना और जब तिरूवल्लुवर का जिक्र हो, तो नाक सिकोड़ कर कहना- ये क्या है भाई? यह अचानक तुम्हें क्या हुआ? तिरूक्कुरल पढ़ा है कभी? तिरूक्कुरल! हम क्यों पढ़ें? जिनका तुम पक्ष ले रहे हो, क्या उनसे कहने का साहस रखते हो कि वे भी हिंदी पढ़ें? उन्होंने कभी बाल्मीकि पढ़ा है?
राष्ट्रीय एकता की बात करना छोड़ दीजिए. हमारे लिए राष्ट्रीय एकता का अर्थ अगर अपने इलाके का वर्चस्व और बाकी का महज उपयोग करना है, तो कहानी भारत की नहीं बनती. वाराणसी में सुब्रह्मण्यम भारती का घर है. 1898 से 1904 तक वे वहां रहे, लेकिन बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है. हम पिछले दिनों उस घर में गये, तो सुब्रrाण्यम भारती के वंशज प्रसन्न हुए, बड़ा भावभीना स्वागत किया.
बोले, पहली बार कोई बिना चुनावी स्वार्थ के आया है. पर हमें लगा, उन्हें कुछ डर भी हुआ- ये लोग घर लेने या उसे कुछ ऐसे रूप देने तो नहीं आये कि हमें ही निकलना पड़े? सच ही था. राजनेता भरोसे लायक रहे ही कहां हैं. भारती देश के मूर्धन्य, क्रांतिकारी कवि रहे थे. तमिलनाडु से वाराणसी आये, यहां का उत्तर भारतीय परिवेश अंगीकार किया, वेश बनारसी अपनाया, हिंदी सीखी, भगिनी निवेदिता के शिष्य बने, श्री अरविंद की निपट संकटकाल में सहायता की और गुमनामी में जब हाथी से चोट का शिकार होकर दिवंगत हुए, तो सात लोग थे, जो चिता तक उन्हें पहुंचाने आये.
यह है हमारा प्यारा भारत. उत्तर भारत को तो उनका सदैव ऋणी होना चाहिए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रात: स्मरण में तिरूवल्लुवर, भारती, कण्णगी भी हैं. वहीं तो पढ़ा. पर जो हमें हर तरह से ‘नवाजते’ रहते हैं, वे भारती का घर भूल गये. वोट नहीं है.
भारत का उत्तर भारत में धर्मातरण नहीं हो सकता. भारत सिर्फ अशोक और विक्रमादित्य नहीं हो सकता. महापुरुषों की तुलना नहीं करनी चाहिए, पर क्या चोल, चेर, पाण्ड्य, कृष्ण देवराय सदृश सम्राट और उनकी परंपराएं कम महान रही हैं? सागर पर साम्राज्य तो चोल सम्राटों ने स्थापित किया. संपूर्ण पूर्वी एशिया- लाओ, चम्पा देश (वियतनाम), कांबोज, इंडोनेशिया- गिनते रहिए.
पर क्या किसी भी पाठ्यकम्रम, विद्यालय, संस्थान में उनका जिक्र है? राजेंद्र चोलन की इस वर्ष सहशताब्दी मनायी जा रही है.नौसेना के विश्वव्यापी विस्तार के वे जनक ही नहीं, उसके पराक्रमी स्वरूप के वे अन्वेषक रहे. पर दीनहीन, आत्मग्लानि, आत्मदैन्य, पराभव से दबे हम दासमानस पुत्रों को नौसेना में भारत की शीर्ष स्थिति कैसे स्वीकार होगी? हुंह, संघी साहित्य है.
तिरूक्कुरल को वल्लुवर ऋषि ने दो हजार साल से पहले रचा. तिरू का अर्थ है माननीय, जैसे श्री. कुरल यानी दोहे. एक-एक छंद और दोहा लाखों का जीवन बदल गया. दो हजार साल की अनवरत परंपरा, नियमित पाठ, अनुश्रवण, उद्धरण. कुरल तमिल जीवन का अविभाज्य अंग है- चाहे यह पक्ष हो या वह पक्ष, चाहे वे हों, जिन्हें आप हिंदी विरोधी, हिंदू विरोधी कह कर तोहमतें जड़ते हैं- या उनके विपरीत सब मानते हैं. सिवाय हम अहंकारियों के!
कहीं भी किसी को तिरूवल्लुवर पढ़ाया जाता है? किसी को तुलसी, मीरा, कबीर के साथ तिरूक्कुरल पढ़ाया गया? कभी बताया गया कि संभवत: भारत के महानतम शासक, कवि, साहित्यकार और समाज सुधारक ‘मदरास’ में भी हुए और उन्होंने दिग्विजय हासिल की?
तोलकफियम लगभग पांच हजार साल पुराना है और उतने ही पुराने हैं शिलप्पसिद्धकारम्, चिंतनमणिमेखलाई, गुण्डलकेशी जैसे ग्रंथ. और कंब रामायण? रवींद्र सेठजी ने भाषा-सेतु बन कर अद्भुत कार्य किया, जीवन खपा दिया. चेन्नई के महालिंगमजी ने बहुत प्रयास किया. सेठ साहब आजकल काफी रुग्ण हैं.
महालिंगमजी चल बसे. उत्तर के लोग अपने में ही मगन रहे. स्वयं हिंदीभाषी राज्य हिंदी को हरा रहे हैं. कोई अपने बच्चे हिंदी स्कूलों में भेजने को तैयार नहीं है. हिंदी की पुस्तकें खरीदते नहीं. प्रकाशक 80 फीसदी तक कमीशन देकर पुस्तकालयों में भिड़ाते हैं. लेखक को खुश करने के लिए कुछ प्रतियां दे देते हैं.
किसी नेता का बयान हिंदी में बनता नहीं. गूगल हिंदी के सत्यानाशी स्वरूप में अनुवाद को परोसा जाता है. हिंदी के पत्रकार हिंदी में विजिटिंग कार्ड छापते नहीं. लेकिन तमिलनाडु हिंदी पढ़े, यह आग्रह जरूर करेंगे. हिंदी के अखबार तो स्वयं हिंदी को अहिंदी बना कर गर्वोन्नत भाव से मार्केटिंग कर रहे हैं.
उन्हें न हिंदी से मतलब है, न किसी और भाषा से. उनका बस चले, तो अंगरेजी में हिंदी का अखबार निकालें, ताकि ‘स्टेटस’ अंगरेजी का होते हुए भी हिंदी के हिस्सेवाले विज्ञापन बटोरे जा सकें. पर तमिलनाडु को तो हिंदी पढ़नी ही चाहिए, क्योंकि मामला राष्ट्रीय एकता का है. इनका राष्ट्र है कहां, जरा यह भी तो पूछ लिया जाये.
भाषाएं बांधती हैं. वे सेतुबंध का काम करती हैं. पर हमने उन्हें द्वीपों में बदल दिया. हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं करते, तो बाकी का क्या करेंगे? भारत माता तो ठीक है. पर अगर भारत सच में हमारी माता है, तो उस माता की सभी भाषाएं हमारी मां-बोलियां, हमारी मातृभाषाएं ही तो हुईं? उनके प्रति, उनको सीखने, उनका महात्म्य जानने, समझने, पढ़ाने का कभी हमने प्रयास किया?
पंजाब में मेरे साथी सांसद सुरेश गुजराल ने शिक्षामंत्री श्री चीमा को लिखा. उम्मीद है कि पंजाब के विद्यालयों में भी तिरूवल्लुवर का नाम पहुंचेगा. बाकी राज्यों से भी अच्छे जवाब मिल रहे हैं. कम-से-कम हम तिरूवल्लुवर का नाम लेना तो सीखें. एकाध कुरल का भावार्थ समझने का तो प्रयास करें. बिना एक क्षण भी यह भाव मन में लाये कि बाद में हम उनसे कहेंगे, हम तमिल साहित्य पढ़ रहे हैं, अब तो तुम हिंदी सीखो!
यह व्यापार नहीं है. पंसारी की दुकान मत बनाइए, भाषा-सेतु के काम को. उन्हें जब जो सीखना होगा, सीखेंगे. हम अपना दंभ दबाएं, और पहले अपने यहां तो हिंदी, संस्कृत की प्रतिष्ठा बचाएं. अगर देश अपना है, तो तमिल, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम को भी अपना मानें. प्रख्यात तमिल कवि और साहित्यकार वैरा मुथु दस बार सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय गीतकार के सम्मान से विभूषित हो चुके हैं. पद्म भूषण हैं. उनकी साहित्यिक कृति किसने छापी? हिंदी में वाणी प्रकाशन को साधुवाद, जिसने हिम्मत दिखायी. लेकिन हममें से कितनों ने वैरा मुथु का नाम सुना?
इस सरकार को इसके लिए धन्यवाद देना ही चाहिए कि पहली बार तिरूवल्लुवर का नाम उत्तर भारत में ले जाने, उनकी जयंती मनाने, जीवन परिचय स्कूल-कॉलेजों में ले जाने के लिए तुरंत स्वीकृति दे दी.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement