* पुरस्कृत पत्र
।। मनोज आजिज ।।
(आदित्यपुर, जमशेदपुर)
झारखंड राज्य जब सन् 2000 में गठित हुआ, तब सबके दिल में एक हसरत जगी कि अब तत्कालीन बिहार का यह दक्षिणी हिस्सा विकसित होगा और खुशहाली की नयी ऊंचाइयां हासिल करेगा. पर वर्तमान स्थिति ठीक विपरीत है. पिछले 12 सालों में राज्य ने 8 मुख्यमंत्री देखे और हताशा ही हाथ लगी. अब 9वें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी की बारी है. दुखद यह है कि झारखंड शुरू से ही राजनैतिक प्रयोग की भूमि बन कर उभरा है.
अभी जो सरकार बनी है यह एक तिकड़मी प्रयोग है, जिसकी जड़ें काफी कमजोर हैं. संविधान के वे सारे प्रावधान जो एक आपात लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर इंगित करते हैं, उन सबका प्रयोग यहां हो चुका है, जो अनैतिक एवं दुर्भाग्यपूर्ण है. 12 सालों में तीन बार राष्ट्रपति शासन और नौ मुख्यमंत्री इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहां के नेताओं में राज्य के विकास की परिकल्पना वाकई नहीं है.
सिर्फ सरकार बनाना और मलाईदार पद बटोरना ही उनका उद्देश्य है. इनके कारण प्रशासनिक अधिकारिओं में भी सुस्ती व बेईमानी समायी है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जन–सरोकार वाले मुद्दों पर भी एकजुटता या गंभीरता नहीं दिखती. यहां के आदिवासी नेताओं से राज्य की जनता को ज्यादा पीड़ा पहुंची है, क्योंकि उनके हाथों में ही हमेशा से कमान रही है और उन्हीं लोगों ने राज्य की संपदा, मर्यादा और ऐतिहासिकता से खिलवाड़ किया है.
विडंबना है कि देश की 40} प्राकृतिक संपदा का मालिक यह राज्य सबसे पीछे है. यहां के नेताओं से अपील है कि वे राज्य के उत्थान के लिए कमर कसें और निज–हित त्याग कर जन–हित में आगे आयें. जनता से भी आग्रह है कि जातिगत, क्षेत्रगत व पार्टीगत भावनाओं से ऊपर उठ कर कर्मठ, ईमानदार एवं देशभक्त उम्मीदवारों को चुने.