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बराबरी के सिद्धांत का ख्याल

* साझा मेडिकल परीक्षा खत्म दो मूल्यों में परस्पर विरोध हो और साथ ही दोनों का पालन किया जाना समान रूप से जरूरी हो, तो क्या किया जाये? लोकतांत्रिक व्यवस्था का उत्तर होगा- दोनों को अपनाएं! मिसाल के लिए, अगर कोई व्यक्ति किसी प्रतिस्पर्धा में बाकियों की तुलना में ज्यादा योग्य पाया जाता है, तो […]

* साझा मेडिकल परीक्षा खत्म

दो मूल्यों में परस्पर विरोध हो और साथ ही दोनों का पालन किया जाना समान रूप से जरूरी हो, तो क्या किया जाये? लोकतांत्रिक व्यवस्था का उत्तर होगा- दोनों को अपनाएं! मिसाल के लिए, अगर कोई व्यक्ति किसी प्रतिस्पर्धा में बाकियों की तुलना में ज्यादा योग्य पाया जाता है, तो बाकियों को पीछे छोड़ते हुए पहले उसको ही योग्यता का पुरस्कार दिया जाना चाहिए, यह बात जायज लग सकती है.

लेकिन, इसका मतलब यह कतई नहीं कि योग्यता और प्रतिभा को तय करनेवाली किसी प्रतिस्पर्धा में जो थोड़े पीछे रह गये, उनके लिए व्यवस्था में प्रवेश का दरवाजा हमेशा के लिए बंद कर दिया जाये. योग्यतम को योग्यता के अनुसार पुरस्कार देना न्यायसंगत है, लेकिन ऐसा करते हुए भूल से भी समानता के बुनियादी मूल्य का उल्लंघन नहीं होना चाहिए.

लोकतांत्रिक व्यवस्था को हमेशा यह देखना होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने इतिहास और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण बहुत से लोग रेस ही पीछे से शुरू कर रहे हैं! सोच के इस कोण से देखें, तो मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट- नीट की व्यवस्था को रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्वागतयोग्य है.

इंजीनियरिंग की प्रवेश-परीक्षा के लिए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का तरीका अपनाया गया और इसके नतीजों से मेडिकल कॉलेजों में दाखिले से जुड़ी परीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को स्वागतयोग्य मानने के ठोस कारण दिखते हैं. आइआइटी-जीइइ के कॉमन एट्रेंस टेस्ट में इस साल तकरीबन 9,700 छात्र पास हुए हैं.

इनमें से आठ हजार छात्र मात्र तीन परीक्षा-बोर्डो (सीबीएसइ-5500), आंध्र प्रदेश (1800) और पंजाब (750) से हैं. कारण, इंजीनियरिंग के कॉमन एंट्रेंस टेस्ट में एक नियम यह भी था कि परीक्षार्थी ने 12 वीं क्लास की परीक्षा में जो प्राप्तांक हासिल किया है, अंतिम नतीजों में उसका भी ध्यान रखा जायेगा.

जानकारों का मानना है कि ये तीनों बोर्ड अपने परीक्षार्थियों को 12वीं के अन्य परीक्षा बोर्डो की तुलना में कहीं ज्यादा उदारता से अंक देते हैं. जाहिर है, कॉमन एंट्रेंस टेस्ट की कोई भी व्यवस्था तब तक समानता के नियम का उल्लंघन मानी जायेगी, जब तक विभिन्न राज्यों के परीक्षा बोर्डो की मूल्यांकन पद्धति समान नहीं हो जाती और कॉमन-एंट्रेंस टेस्ट के नतीजों में विभिन्न राज्यों के छात्रों का प्रतिनिधित्व न्याय-संगत नहीं हो जाता.

विभिन्न राज्यों ने मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के चलन पर ऐतराज जताया था और सुप्रीम कोर्ट का आदेश देश के संघीय ढांचे के भीतर उनकी चिंताओं को जायज साबित करता है.

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