झारखंड में कुछ रेलखंडों पर डकैती आम बात हो गयी है. खास कर आसनसोल रेल मंडल के अंतर्गत जसीडीह व झाझा के बीच यात्रियों के जानमाल की सुरक्षा रेल प्रशासन ने पूरी तरह भगवान भरोसे छोड़ दी है. यात्री ये मान कर ही रेलगाड़ी में बैठते हैं कि कभी किसी क्षण कुछ भी हो सकता है. दहशत में यात्री सफर करने को मजबूर हैं. यात्री किराये में कोई कमी नहीं, लेकिन सुरक्षा नाममात्र की होती है. ऐसे में यात्री करें तो आखिर क्या करें? चेन पुलिंग कर अपराधी आराम से घटना को अंजाम देते हैं. उनके द्वारा घटना को अंजाम देने के तरीकों से ऐसा प्रतीत होता है कि रेलवे को यात्रियों की जानमाल की सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है.
कई रेलगाड़ियों में तो रेलवे के पुलिसकर्मियों का दर्शन नहीं होता. अत्याधुनिक तकनीक व मोबाइल के युग में घटना की सूचना सभी रेलवे अधिकारियों और कर्मचारियों को मिनटों में ही मिल जाती है. इसके बावजूद वे हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहते हैं. कभी-कभी तो यात्री ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि शायद इन अधिकारियों की अपराधियों से कोई मिलीभगत तो नहीं? ये रेलवे की लचर व्यवस्था को दर्शाता है. रेलवे कर्मचारी आपराधिक वारदात होने के बाद सवारियों की शिकायत तक लेने को तैयार नहीं होते. उनके रवैये से सवाल पैदा होता है कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा. कोई लाचार और बेबस सवारियों की सुध कब लेना शुरू करेगा?
सवाल यह भी है कि क्या हम यात्री इसी भय आहत होकर यूं ही सफर करते रहेंगे? क्या हमारे जान-माल की कोई कीमत नहीं? रेलवे अधिकारी कब अपनी ड्यूटी के प्रति जाग्रत और सजग होंगे? कौन इनके खिलाफ कार्रवाई करेगा? इन सभी सवालों का जवाब रेलवे को देना ही होगा.
पूनम गुप्ता, मधुपुर