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एक दाग से असली पहचान नहीं मिटती

‘‘अरे भाई कैसे हैं? कब आये मुंगेर से? एक-दो पिस्टल लेकर आये या नहीं?’’- मेरे एक मित्र ने कई दिनों बाद मिलने के साथ ही मुझ पर सवालों की बौछार कर दी. इससे पहले कि मैं उनके सवालों का जवाब देता, एक और सवाल फेंक दिया उन्होंने, ‘‘सुना है कि मुंगेर में घर-घर में पिस्टल, […]

‘‘अरे भाई कैसे हैं? कब आये मुंगेर से? एक-दो पिस्टल लेकर आये या नहीं?’’- मेरे एक मित्र ने कई दिनों बाद मिलने के साथ ही मुझ पर सवालों की बौछार कर दी. इससे पहले कि मैं उनके सवालों का जवाब देता, एक और सवाल फेंक दिया उन्होंने, ‘‘सुना है कि मुंगेर में घर-घर में पिस्टल, गोली, बंदूकें मिलती हैं.’’ मैंने कहा कि मैं इसका जवाब आपको लिख कर दूंगा, तब तक इंतजार कीजिए. अपनी सीट पर बैठने के साथ ही मेरा मन मुंगेर की स्मृतियों में खो गया. बचपन के वे दिन. सुबह साढ़े तीन बजे साइकिल से दोस्तों के साथ योगाश्रम के लिए निकलना.

वही योगाश्रम, जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योग विद्यालयों में शुमार है और जहां देश-विदेश से लोग योग व साधना के माध्यम से इलाज करवाने पहुंचते हैं. योगाश्रम को कर्णचौड़ा भी कहते हैं, जिसका जिक्र महाभारत में मिलता है. राजा कर्ण के अंग प्रदेश की राजधानी थी मुंगेर, जिसे तब मोदगिरी या मुगद्लपुरी कहा जाता था. शक्तिपीठ चंडिका स्थान भी यहीं है. किंवदंती है कि यहां दानवीर कर्ण रोज कड़ाही में खौलते तेल में कूद जाते थे और मां शक्ति प्रसन्न होकर उन्हें जिंदा करके ढाई मन सोना देती थीं, जिसे वे गरीबों में बांटा करते थे.

एक बार किसी लोभी ने खुद को खौलती कड़ाही में डाल दिया और मां शक्ति ने उसे कर्ण समझ कर जिंदा करके ढाई मन सोना दे दिया. तब से वह नाराज हो गयीं और कड़ाही हमेशा के लिए उलट दी. आज भी यह कड़ाही यहां चट्टान के रूप में उलटी पड़ी है. कई और मान्यताएं मुंगेर से जुड़ी हैं. जैसे, मां सती की यहां बायीं आंख गिरी थी और तभी से यह स्थान चंडिका स्थान कहलाने लगा. कष्टहरणी घाट भी यहीं है, जहां गंगा में नहाने से एक व्यक्ति की सभी बीमारियां दूर हो गयी थीं और तब से यह घाट कष्टहरणी के नाम से प्रख्यात हो गया.

गंगा के नीचे से गुजरनेवाले सुरंग को देख कर पर्यटक दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं. हालांकि इसमें अब पानी भर गया है. अग्नि परीक्षा देने के बाद माता सीता ने जिस कुंड में स्नान किया था, वह सीता कुंड यहीं स्थित है और हर मौसम में इसका पानी खौलता ही रहता है. गंगा किनारे स्थित मुंगेर बंगाल के अंतिम नवाब मीर कासिम की राजधानी भी रहा है. वर्ष 1934 के विनाशकारी भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गये मीर कासिम के किले के अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं.

यहां हर चौक-चौरहा महापुरुषों, क्रांतिकारियों, शहीदों एवं राष्ट्रीय धरोहरों के नाम पर है. प्राकृति सौंदर्य भी यहां का अद्भुत है. खड़गपुर झील और भीम बांध की खूबसूरती देखते ही बनती है. जमालपुर का रेल पहिया कारखाना देश भर में विख्यात है. कुछ घटनाओं या कुछ लोगों के आधार पर किसी जगह की पहचान नहीं होती. पहचान उसके इतिहास, उसकी धरोहर, उसके मौजूदा स्वरूप से होती है.

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

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