अभी कुछ दिनों पहले ही भारत में चुनाव सुधार के लिए देश के माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आया कि किसी जन-प्रतिनिधि को दो साल की सजा होते ही उसकी सदस्यता उसी दिन से रद्द कर दी जाये. यह आदेश स्वागत-योग्य है. साथ ही, लोकतंत्र में आस्था रखनेवाले देशवासियों के मन में भी वर्षो से चुनाव सुधार की दिशा में एक विचार आता रहा है.
मैं चाहता हूं कि यह विचार इस मंच पर रखूं, ताकि इस पर विमर्श हो सके. यह भी चाहूंगा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस विचार पर अपनी राय अवश्य प्रकट करें. जब से होश संभाला है तब से देख रहा हूं कि भारत में होनेवाले चुनावों में भारत की आधी से ज्यादा आबादी हिस्सा ही नहीं लेती और इसमें रोचक, किंतु चिंतनीय पक्ष यह है कि चुनाव में हिस्सा न लेनेवाले लोग व्यवस्था पर सदा चीखते-चिल्लानेवाले लोग हैं.
ऐसे लोग राग तो हमेशा कोढ़ का अलापते हैं, मगर इलाज वाले दिन (इस संदर्भ में चुनाववाले दिन) अस्पताल जाते ही नहीं और फिर परिणाम आते ही दोबारा चीखने-चिल्लाने लग जाते हैं कि हाय इलाज नहीं हुआ या फिर गलत इलाज हो गया! अब इसका जिम्मेवार कौन है?
।। राजीव थेपरा ।।
(रांची)