।। राजेंद्र तिवारी ।।
(कारपोरेट संपादक, प्रभात खबर)
स्कूलों में नया सेशन शुरू हो गया है. हर अभिभावक फीस, यूनिफार्म और कापी-किताब के चक्कर में है. स्कूलों से कापी-किताब की सूची और फीस की स्लिप दे दी गयी है. कहीं-कहीं स्कूलों से ही कापी-किताब लेनी है, कुछ स्कूलों में किताब की दुकान का नाम बता दिया गया है और कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि कहीं से भी खरीद लो. खैर हम यहां पर इन बातों पर कहानी नहीं लिखने नहीं जा रहे. यह कहानी तो आप में से अधिकतर लोग जान ही रहे होंगे, मैं तो सिर्फ एक स्कूल की फीस की मदों को शेयर करने जा रहा हूं.
पिछले हफ्ते मेरे एक साथी मेरे पास आये. बोले, ये फीस की रसीद देखिए. मैंने पूछा, भाई ऐसा क्या खास है इसमें, कोई गड़बड़ है क्या? उन्होंने कहा, गड़बड़ ही नहीं, गड़बड़घोटाला है. अभिभावक तो बेचारा कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि उसे अपने बच्चे को पढ़ाना है. मैंने उनसे फीस की रसीद ली. देखा तो उसमें ट्यूशन फी वगैरह का मद था ही नहीं.
मैंने उनसे पूछा कि यह कैसी फीस रसीद है? उन्होंने कहा कि ट्यूशन फी वाली रसीद अलग है, यह तो अनुपूरक रसीद है. आप सोच रहे होंगे कि अनुपूरक रसीद क्या होती है? तो जान लीजिए, यह रसीद एक अच्छे निजी स्कूल की है जिसका नाम विश्व के एक अतिप्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के नाम पर है. यह रसीद कक्षा 12 के लिए है. इसमें पहला मद था एनुअल चार्जेज और इस मद में 5500 रु पये. दूसरा मद स्मार्ट क्लास और इस मद में 2000 रुपये. तीसरा मद कंप्यूटर फी और इस मद में 3000 रुपये. चौथा मद सिक्स्थ पेपर और इस मद में 1800 रुपये और पांचवा मद मिसलेनियस, इस मद में 1000 रुपये.
आप सोच रहे होंगे कि स्मार्ट क्लास क्या होता है? मैं भी चौंका इस मद पर और पूछा कि यह क्या होता है? पता चला, कभी-कभी क्लास में बोर्ड पर प्रोजेक्टर से कुछ स्लाइड्स दिखायी जाती हैं और इसे ही स्मार्ट क्लास कहते हैं. कंप्यूटर फी तो नाम से स्पष्ट है कि लैब के कंप्यूटर के लिए ये फी ली जाती होगी, लेकिन सिक्स्थ पेपर? मैं चौंका कि यह क्या होता है, पूछने पर पता चला कि फिजिकल एजूकेशन की जो क्लास होती है, उसे ही सिक्स्थ पेपर कहते हैं. इसके बाद मैंने पूछा कि इतनी मदों के बाद मिसलेनियस मद भी? हमारे साथी ने कहा- चौंकिये नहीं, प्राइमरी क्लासेज में तो 1000 रुपये अबेकस की फीस भी पड़ती है.
हमारे इन साथी ने कहा कि आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन इस स्कूल में साइंस-कॉमर्स की कक्षा 12 में 11 सेक्शन हैं और हर सेक्शन में लगभग 60 बच्चे हैं. अब स्मार्ट क्लास की फीस ही लें तो एक सेक्शन के बच्चों से फीस के रूप में लिये गये 1.20 लाख रु पये. 11 सेक्शन से कुल फीस हो गयी 13.20 लाख रुपये. अब यदि क्लास 1 से 12 तक यही मान लें कि हर क्लास में 11 सेक्शन ही होंगे, तो इन सबसे मिली फीस हुई 1 करोड़ 45 लाख 20 हजार रुपये. यानी प्रोजेक्टर से स्लाइड दिखाने के लिए स्कूल साल में ले रहा है करीब डेढ़ करोड़ रुपये.
यह इसी साल की बात नहीं है, कई साल से यह चल रहा है. इसी तरह कंप्यूटर फी जो हुई इसका करीब डेढ़ गुना यानी दो-सवा दो करोड़ रुपये. अकबकाइयेगा नहीं, यदि आनेवाले दिनों में कुरसी फी, टेबल फी, टायलेट फी आदि भी लगने लगे. वैसे इस फी रसीद में सबसे आश्चर्य तो सिक्स्थ पेपर की फी है. यानी टीचर पढ़ा रहा है तो उसकी फी अलग से. ताज्जुब नहीं कि आनेवाले दिनों में स्कूल इस बात की फी लेने लगें कि मैथ्स मिश्र जी की, फिजिक्स पुरवार जी की और केमिस्ट्री चावला जी की.
यह अनुपूरक फी होगी. दीजिए तो ये टीचर पढ़ायेंगे, नहीं तो जो पढ़ाएं उनसे ही अपने बच्चे को पढ़वाना पड़ेगा. यह सब हो क्यों रहा है, इस पर सोचने की जरूरत है सबको. सोचने की जरूरत है कि ब्रिटेन में बच्चों की गणित कमजोर होती है तो हल्ला मच जाता है, सरकारी टीचर नाकाबिल साबित होते हैं तो वहां की संसद में सवाल उठता है, लेकिन अपने यहां सरकारी स्कूलों में बच्चे फेल होते हैं तो उन्हें नंबर बढ़ा कर पास कर दिया जाता है, नाकाबिल शिक्षकों को नियमति करने व उनकी तनख्वाह बढ़ाने का सवाल विधानसभाओं व संसद में उठता है. बाजारोन्मुखी व्यवस्था में जवाबदेही तो सिरे से गायब हो गयी है, तो फिर ऐसा क्यों न हो?
कथित विकास प्रेमी लोग तुरंत आपको टोक देंगे कि भइया किसने कहा, अपने बच्चे को ऐसे स्कूल में पढ़ाने को? कुछ भी मुफ्त नहीं होता है, नो फ्री लंचेज! जी, बिलकुल सही. लेकिन सोचिए कि जो चीजें आप फ्री में प्रकृति से लेते हैं, वे सब जीवन के लिये अनिवार्य और अपरिहार्य हैं, लंच से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं.
हवा, पानी, सूरज की रोशनी. इनका तो पैसा मांगने कोई नहीं आता. कबीर ने लिखा था- वृक्ष कबहुं नहिं फल भखे, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारन, साधुन धरा शरीर।। रहीम ने लिखा था – तरु वर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।। क्या कथित विकास प्रेमी लोग इन दोहों को भी बदल देंगे?
आम आदमी के लिए जो भी सामाजिक सुरक्षा सिस्टम में थी, वह सोवियत संघ के विघटन के बाद के एकध्रुवीय विश्व में गायब होती जा रही है- चाहें वे काम के घंटे हों, पेंशन हो, शिक्षा हो या स्वास्थ्य. सोचिए!