एक ही दिन, दो घंटे के अंदर दो हत्याएं. मौका-ए-वारदात के बीच का फासला भी महज दो किलोमीटर. एक जगह पार्षद के पति की हत्या, तो दूसरी जगह सबके सामने एक युवक की जान ले ली गयी. यही नहीं, उसी दिन, उसी शहर में सामूहिक दुष्कर्म की दो घटनाएं. एक पीड़िता की हालत गंभीर, तो दूसरी को दरिंदों ने मौत के घाट उतार दिया.
इसके अलावा एक शख्स को रंगदारी नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी गयी, तो एक युवक पर रंगदारी के लिए जानलेवा हमला किया गया. ये सब हो रहा है, झारखंड की राजधानी रांची में. राजधानी में लगातार घट रही इन वारदातों से साफ हो गया है कि अब राज्य में कानून का राज नहीं रह गया है. दुस्साहसी अपराधी बेलगाम हो चले हैं. उनमें पुलिस और कानून का खौफ अब नहीं रह गया है. वो जब जैसे चाह रहे हैं वारदात को अंजाम दे रहे हैं.
काम के बोझ से लदी पुलिस हमेशा की तरह सांप के निकल जाने के बाद लकीर पीटती नजर आती है. जब ये स्थिति राजधानी रांची की है, तो राज्य के अन्य जिला मुख्यालयों और सुदूर गांवों में रह रहे आम लोगों की जिंदगी तो निश्चित ही ऊपर वाले के भरोसे ही चल रही होगी. राजधानी रांची में अपराधका ग्राफ इतना ऊपर पहुंच गया है कि अब छोटे-छोटे मामलों पर किसी की नजर ही नहीं जाती. मोबाइल और चेन छीनने की घटनाएं अब खबर नहीं बनतीं. आये दिन दुष्कर्म की वारदातें हो रही हैं और गुनहगारों को पुलिस पकड़ नहीं पा रही है.
एक समय था जब झारखंड में आपराधिक घटनाएं बेहद कम होती थीं. कभी-कभार जब हत्या या दुष्कर्म की घटनाएं घटती थीं, तो अखबारों में कई दिन सुर्खियां बनती थीं. चौक-चौराहों पर लोग उस पर चर्चा करते मिल जाते हैं. अब तो ये सब रोज की बात हो गयी है. इसमें सारा दोष पुलिस को क्यों दिया जाये. राज्य की राजनीति में जितनी ज्यादा गिरावट आती गयी, आपराधिक गतिविधियों का ग्राफ ऊपर उठता गया. अब समय आ गया है कि समाज के प्रबुद्ध और आम लोग भी अपराध और अपराधियों के खिलाफ खड़े हों. जन भागीदारी के जरिये ही सामाजिक बुराइयां कम की जा सकती हैं. एक बात गांठ बांध लें. अपराधी किसी के नहीं होते. ये अपनी हवस और जरूरत पूरी करने के लिए हमारे-आपके घर पर भी डाका डाल सकते हैं.