किसी शक्ति-प्रदर्शन का औचित्य न हो तो उसे दबंगई ही कहा जायेगा. सारधा चिटफंड मामले में पश्चिम बंगाल के मंत्री मदन मित्र की गिरफ्तारी के बाद तृणमूल कांग्रेस का शक्ति-प्रदर्शन भी दबंगई सरीखा ही जान पड़ता है.
अलीपुर कोर्ट में मित्र की पेशी के वक्त पार्टी समर्थकों की भारी भीड़ जुटी थी. इसके जरिये पार्टी शायद जताना चाह रही थी कि उसका मंत्री निदरेष है. वहां जो बात अनकही रह गयी, उसे मुखर करने का काम पार्टी सांसदों ने सोमवार को लोकसभा से वॉक-ऑउट और संसद के मुख्य द्वार पर प्रदर्शन करके किया. तर्क था कि केंद्र सरकार राजनीतिक दुर्भावना से सीबीआइ का दुरुपयोग कर रही है. यह एक हकीकत है कि केंद्र सरकारों ने कई दफे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में राज्य सरकारों या विरोधी दलों के नेताओं के विरुद्ध सीबीआइ का गलत इस्तेमाल किया है. सीबीआइ जांच की विश्वसनीयता पर सुप्रीम कोर्ट भी अंगुली उठा चुका है.
लेकिन, सच यह भी है कि जब भी विरोधी दल का कोई नेता सीबीआइ जांच के दायरे में आता है तो केंद्र पर इस जांच एजेंसी के दुरुपयोग का आरोप लगाता है, जबकि जांच में जुटाये तथ्यों के आधार पर ऐसे अनेक नेताओं को अदालत से सजा हो चुकी है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि सीबीआइ फैसला देनेवाली संस्था नहीं है, सही-गलत का फैसला कोर्ट में होता है. इसलिए पश्चिम बंगाल के मंत्री अगर पाक-साफ हैं, तो राज्य सरकार को स्वयं आगे बढ़ कर सीबीआइ जांच में सहयोग करना चाहिए था.
उसे भरोसा होना चाहिए था कि कोर्ट में दूध-पानी का फर्क हो जायेगा. परंतु, यह भूलते हुए कि जांच कोर्ट के आदेश से हो रही है, पार्टी अपने समर्थकों की भीड़ जुटा कर या प्रदर्शन के जरिये दबाव बनाने की राजनीति कर रही है. यह कड़वी सच्चई है कि कोई भी बड़ा घोटाला सत्तासीनों की शह के बिना नहीं होता. सारधा प्रकरण में जिस तरह तृणमूल कांग्रेस से जुड़े लोगों की गिरफ्तारियां हो रही हैं, उन्हें देखते पार्टी को जांच में सहयोग कर अपने दामन पर लगे दाग धोने की चिंता होनी चाहिए थी. ऐसे मामलों में केंद्र सरकार को भी अधिकतम पारदर्शिता के जरिये जांच एजेंसी के दुरुपयोग के आरोपों से बचने का प्रयास करना चाहिए. न्याय की मांग है कि इस प्रकरण के सच तक पहुंचने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें जांच में सहयोग करें.