23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सही कूटनीति की दरकार

।। सुशांत सरीन ।।(विदेश मामलों के जानकार) अमेरिका की नीतियां सिर्फ अमेरिका के लिए होती हैं. उसकी वैश्विक नीति का मकसद अपने हितों को साधना ही होता है. न्यूयॉर्क पर हुए 9/11 के हमले के बाद पिछले 12 साल की अमेरिकी नीतियों पर गौर करें, तो यही समझ में आता है कि अमेरिका सिर्फ अपने […]

।। सुशांत सरीन ।।
(विदेश मामलों के जानकार)

अमेरिका की नीतियां सिर्फ अमेरिका के लिए होती हैं. उसकी वैश्विक नीति का मकसद अपने हितों को साधना ही होता है. न्यूयॉर्क पर हुए 9/11 के हमले के बाद पिछले 12 साल की अमेरिकी नीतियों पर गौर करें, तो यही समझ में आता है कि अमेरिका सिर्फ अपने लिए सोचता है.

अफगानिस्तान के तालिबान के साथ अमेरिका की बातचीत के संदर्भो को समझने की जरूरत है. अमेरिका के लिए अफगानिस्तान एक दलदल है और वह उससे निकलना चाहता है. तालिबान के साथ अमेरिका की बातचीत का मकसद वह नहीं है, जो बताया जा रहा है. अब भारत भी इस वार्ता का समर्थन कर रहा है, जबकि अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की भारत यात्रा से पहले तक हमारा रुख कुछ और था.

इस वार्ता को लेकर विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के हालिया बयानों का अध्ययन करें, तो लगता है कि सारे बयान वाशिंगटन में लिखे गये हैं. दरअसल, अमेरिका का जहां-जहां दखल है, वहां-वहां भारत की अपनी कोई नीति ही नहीं है. भारत बस अमेरिका की नीति को अपना लेता है, क्योंकि सरकार के कई नेता अमेरिका-भक्त हैं.

न तो हमारे देश की सीमा अमेरिका से मिलती है और न ही हम अमेरिका जैसे विकसित हैं. न हमारे पास वैसी ताकत है और न वैसा बनने के लिए समुचित संसाधन ही हैं. फिर भी हमारे नेता अमेरिकी नीतियों का अनुसरण करते हैं. यह समझना जरूरी है कि उन्हीं देशों की नीतियां हमारे लिए फायदेमंद या नुकसानदायक हो सकती हैं, जिनसे हमारी सीमाएं लगी हुई हैं. मिसाल के तौर पर, अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद वहां के प्रति अमेरिकी नीति का समर्थन करने की बजाय हमें यह समझना होगा कि अब अफगानिस्तान की नीति क्या होगी.

नफा-नुकसान इस बात पर निर्भर करेगा कि अब अफगानिस्तान का तालिबान के प्रति क्या रुख होगा. अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अभी तक हमारे पास कोई ऐसी नीति नहीं है, जिससे कि हम अफगानिस्तान से अपने रिश्तों को कोई नया आयाम दे सकें.

हम लगातार अफगानिस्तान और अन्य देशों को सहायता देते आ रहे हैं, भले ही हमारी खुद की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो रही हो. ऐसे में हमें एशियाई देशों पर थोड़ा सा निर्भर होना पड़ता है. ईरान पर हमारी निर्भरता इसी बात को लेकर है. ईरान से हमारा व्यापार 12-15 अरब डॉलर का है, जबकि अमेरिका से हमारा व्यापार 200 अरब डॉलर का है.

अमेरिका को समर्थन देने के पीछे कहीं न कहीं यह व्यापारिक दबाव भी काम करता है. हमें इस अवधारणा से बाहर आने की जरूरत है कि अमेरिका जो कर रहा है, कह रहा है, सिर्फ वही सही है. एक दूसरे नजरिये से देखें तो अमेरिका चाहता तो अफगानिस्तान से पूरी तरह से निकल सकता था, लेकिन ऐसा लगता है और यह हो सकता है कि वह तालिबान से वार्ता कर पाकिस्तान को किनारे करना चाहता हो.

दूसरी तरफ भारत विरोधी गतिविधियों को जारी रखने के लिए पाकिस्तान को भी एक अदद समर्थक की जरूरत है, और इस मामले में तालिबान से बेहतर कोई और नहीं हो सकता. अमेरिका के साथ खड़े होने के पीछे यह समझ भी हो सकती है, ताकि पाकिस्तान पर थोड़ा अंकुश लगाया जा सके. लेकिन, अभी ऐसा होने की संभावना नजर नहीं आ रही है. ऐसा इसलिए, क्योंकि अमेरिका-तालिबान वार्ता भी एक बिंदु पर जाकर झूठी लगने लगती है.

पाकिस्तान की तालिबानी नीति का केंद्र भारत रहा है. इसलामी कट्टरपंथ के चलते तालिबान कभी भी भारत का सहयोग नहीं करेगा. दूसरी ओर, अफगानिस्तान की मदद करने के लिए भारत के पास बहुत कुछ है, और वह कर भी रहा है. पाकिस्तान के पास सहायता देने लायक कुछ भी नहीं है. ऐसे में पाकिस्तान और तालिबान एक लगने लगते हैं. इसलिए वे दोनों यही चाहेंगे कि भारत अफगानिस्तान को हर मुमकिन आर्थिक मदद देता रहे, लेकिन उसका अफगान या तालिबान की राजनीति में कोई दखल न हो. ऐसा हो भी रहा है, क्योंकि भारत के पास इसके लिए कोई सार्थक कूटनीति नहीं है.

भारत को अमेरिका का समर्थन करने की जगह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तालिबान विरोधी ताकतों का समर्थन करना चाहिए. तालिबान से नफरत करने वाले पाकिस्तान में भी हैं और अफगानिस्तान में भी. राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक तीनों स्तर पर उन्हें अपने में जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए. अगर ऐसा हो सके, तो तालिबान से किसी तरह की वार्ता की कोई जरूरत ही नहीं होगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें