झारखंड विधानसभा चुनाव का प्रचार अब जोर पकड़ चुका है. प्रशासन से लेकर प्रत्याशी तक अपने-अपने स्तर से चुनाव मैदान में कूद गये हैं. राजनीतिक दलों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए तरह-तरह के नुस्खे आजमाये जा रहे हैं. रैली और जन सभाओं के साथ चुनाव में हाइटेक तरीके भी अपनाये जा रहे हैं.
अमूमन सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने बजट के अनुसार चुनाव की बैतरणी पार करना चाहते हैं. इस बार चुनाव में सोशल साइट्स, फेसबुक, व्टासएप जैसी नयी तकनीक का भी खूब सहारा लिया जा रहा है. राजनीतिक दल वोटरों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सोशल साइट्स पर छाये हैं. कुछ राजनीतिक दलों ने तो इसके लिए बाहर की एजेंसियों को हायर किया है. कई एजेंसियां झारखंड में राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार भी कर रही हैं. इनका काम नेताओं का भाषण तैयार और उनके कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करना है. इसके एवज में एजेंसियों को पार्टियां अच्छी खासी रकम भी दे रही हैं. खैर, चुनाव लड़ना है, तो प्रचार भी करना होगा. तरीका कोई भी हो. क्योंकि राजनीतिक दलों को यह पता है कि सही समय और सही जगह पर बात रखने से ही फायदा होना है.
इसलिए पार्टियां कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. हाइटेक चुनाव प्रचार के माध्यम से राजनीतिक दल एक खास वर्ग के वोटरों पर भी निशाना साधने की कोशिश में लगे हैं. राज्य में युवा वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. राजनीतिक पार्टियों को यह पता है कि जिस ओर युवाओं का झुकाव होगा, उस ओर पलड़ा भारी हो सकता है.
आज के युवाओं में सोशल साइट्स, फेसबुक व व्टासएप को लेकर काफी क्रेज है. ऐसे में राजनीतिक दल इनको ही माध्यम बना कर युवाओं तक अपनी बात पहुंचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. यानी हाइटेक प्रचार के सहारे युवा मतदाताओं को लुभाने को कोशिश की जा रही है. पार्टियों को यहा पता है कि युवा मतदाता चुनाव को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं. झामुमो जैसी क्षेत्रीय पार्टी भी हाइटेक चुनाव प्रचार को सहारा ले रही है. भाजपा तो इस काम को बहुत पहले से कर रही है. अब सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ हाइटेक चुनाव प्रचार के सहारे ही पार्टियों की नैया पार हो सकती है. इसका जवाब तो चुनाव नतीजे देंगे. अभी तो कोई किसी से पिछड़ना नहीं चाहता.