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मजदूर से माफिया और विधायक बने माननीय अब भाजपा में

अनुराग कश्यप ‘ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा. भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है. देश के हर कोने से भ्रष्टाचार को मिटाना है. अगर करप्शन खत्म हो जाये तो देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है.’ (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 12 अगस्त, 2014 को कारगिल में लोगों को […]

अनुराग कश्यप

‘ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा. भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है. देश के हर कोने से भ्रष्टाचार को मिटाना है. अगर करप्शन खत्म हो जाये तो देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है.’ (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 12 अगस्त, 2014 को कारगिल में लोगों को संबोधित करते हुए)

झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद भाजपा में जो कुछ दर्शन हुए, और हो रहे हैं, उसमें कम-से-कम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपरोक्त विचार की दूर-दूर तक कोई झलक नहीं. देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवीलाल याद आये-‘‘सिद्धांत कुछ नहीं होता, सब कुछ सत्ता के लिए होता है. मैनिफेस्टो (चुनावी घोषणा पत्र) का कवर बदलता है, पर मजमून कभी नहीं बदलता.’’ विचारधारा व मूल्यों की बात करनेवाली भाजपा ने साबित कर दिया है कि अधकचरे किस्म के नागरिक निकायों वाले झारखंड में उसके लिए लोकतंत्र, चुनाव, मतदान, वोट एक सुखद नाटक है.

एक ही मंत्र है-सत्ता चाहिए. किसी हाल में, किसी तरीके से. सूबे के कुछ आला अफसर और दल-बदलने में महारथी नेता-विधायक डंके की चोट पर भाजपा में शामिल हुए. अपने ‘कथित राजनीतिक गुरु’ की दिखायी राह पर चल कर कपड़े की तरह पार्टी बदलनेवाले एक विधायक भाजपा में न सिर्फ शामिल हुए बल्कि टिकट भी हासिल कर लिया है. माननीय विधायक सूबे के कोयला क्षेत्र से आते हैं. काली अंधेरी रात में कोयला का काला धंधा चलवाने में महारथी माननीय विधायक ने जिस गुपचुप तरीके से भाजपा का दामन थामा, उससे कोयला क्षेत्र के भाजपा नेता व कार्यकर्ता समेत उनके तमाम विरोधी दांतों तले ऊंगली दबाने को विवश हो गये. हरा, लाल के बाद अब भगवा झंडा उठा चुके माननीय विधायक मजदूरों के कथित नेता और स्वघोषित मजदूर मसीहा भी हैं. दल बदलने में माहिर माननीय विधायक वर्तमान में राजनीति में नया इतिहास लिख रहे हैं. बतौर मजदूर नेता माननीय विधायक एक हाथ में ‘लाल झंडा’ लेकर ‘लाल सलाम’ बोल रहे हैं, तो दूसरी ओर बतौर भाजपा प्रत्याशी दूसरे हाथ में ‘भगवा झंडा’ लेकर ‘अच्छे दिन..’ की बात कर रहे हैं. थोड़ा और स्पष्ट कर दें कि माननीय विधायक पूरे भारत में पहले ऐसे भाजपा प्रत्याशी हैं, जो वामपंथी मजदूर संगठन में महत्वपूर्ण पदधारी हैं.

भाजपा में शामिल होने और टिकट पाने के बाद जहां एक ओर माननीय विधायक के अच्छे दिन आ गये हैं, वहीं दूसरी ओर कोयला क्षेत्र के भाजपाई सबसे बुरे दिन से गुजर रहे हैं. 15-20 साल पूरी निष्ठा से भाजपा में गुजारने वाले कोयला क्षेत्र के कई भाजपा नेता व कार्यकर्ता मुंह छुपाने को मजबूर हैं.

कारण माननीय विधायक के कारनामों के खिलाफ पिछले चार-पांच वर्षो के दौरान ये भाजपा नेता-कार्यकर्ता कई बार सड़क पर उतर कर आंदोलन कर चुके हैं. कोयला क्षेत्र के भाजपा नेता-कार्यकर्ता गला फाड़-फाड़ कर माननीय विधायक को माफिया व रंगदार और माननीय विधायक की तत्कालीन पार्टी को ‘भ्रष्टाचारियों की पार्टी’ बताते रहे हैं. अब इन भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं से जनता पूछ रही है कि भ्रष्टाचार के प्रतीक माननीय विधायक भाजपा में कैसे आ गये? जनता के इस सवाल पर भाजपा नेता-कार्यकर्ता निरीह व निरुत्तर बने हुए हैं.

बहरहाल माननीय विधायक के बारे में जानते हैं. राजनीति में अपना गुरु बदलने और जिसकी उंगली पकड़ कर चले, उसे अंगूठा दिखाने में माहिर माननीय विधायक ने बीते दो दशक के दौरान जो तरक्की की, वह किसी चमत्कार से कम नहीं. इसे आप किस्मत, भाग्य जो कह लें. 80 से 100 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी पर बतौर दिहाड़ी मजदूर एक फैक्टरी में पत्थर चुनने से लेकर माथा पर कोयला लेकर ट्रक में लोडिंग का काम करनेवाले माननीय विधायक एक सरकारी कंपनी में जमीन के बदले मिली नौकरी को छोड़ राजनीति में आये. शुरुआत एक झारखंड नामधारी पार्टी से की. झारखंड सरकार में मंत्री रहे एक विधायक के लटक बनके माननीय विधायक ने कोयला लोडिंग प्वाइंट व लोकल सेल में बेरोजगार युवकांे को काम देने की मांग को लेकर आंदोलन किया. बाहरी-भीतरी के नारे के कारण स्थानीय कुछ युवाओं का साथ मिला और माननीय विधायक की हिम्मत बढ़ी. फिर माननीय विधायक कोयला कंपनी के नीचे स्तर के अधिकारियों को धमकाने, हड़काने लगे. इससे न सिर्फ माननीय विधायक का दबदबा बढ़ता चला गया, बल्कि रंगदारी के रूप में पैसे भी आने लगे. जिस विधायक की छत्रछाया में माननीय विधायक यह सब कर रहे थे, उन्होंने आपत्ति जतायी, तो अपने पहले राजनीतिक गुरु विधायक महोदय को माननीय विधायक ने अंगूठा दिखा दिया.

उस समय तक रंगदारी की रकम बढ़ती गयी थी और माननीय विधायक साल-दर-साल धनवान होते गये थे. इसी बीच माननीय विधायक ने दल बदलने में माहिर झारखंड के एक कद्दावर-बड़बोले नेता सह विधायक की उंगली पकड़ी. बड़बोले नेता सह विधायक महोदय ने राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों का चक्कर लगाने के बाद खुद की नयी पार्टी बनायी थी. उन्हें भी कैडर की जरूरत थी और माननीय विधायक को किसी राजनीतिक दल की छत्रछाया की. इस बीच बड़बोले नेता सह विधायक महोदय के संरक्षण में माननीय विधायक ने एक ‘सेना’ बनायी. गांव के भोले-भाले बेरोजगार युवकों को विभिन्न तरह के झूठे सपने दिखाने और मौका-बे-मौका 100-50 रुपये देकर माननीय विधायक ने अपना दबदबा और बढ़ाया. कोल डंपों व लोडिंग प्वाइंटों पर कोयला व्यवसायियों से रंगदारी वसूली के अलावा बीडीओ-सीओ ऑफिस तक माननीय विधायक ने अपना आतंक राज फैलाया. बीडीओ-सीओ को गाली-गलौज करना, विधायक मद के काम करनेवाले ठेकेदारों को धमका कर रंगदारी वसूलना, सरकारी योजनाओं के काम अपने गुर्गो को दिलवाना माननीय विधायक के लिए आम बात हो गयी.

वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में माननीय विधायक अपने दूसरे राजनीतिक गुरु बड़बोले नेता सह विधायक महोदय की पार्टी से खड़े हुए. इस चुनाव में माननीय विधायक तीसरे नंबर पर रहे और माननीय विधायक के पहले राजनीतिक गुरु विजयी रहे, मगर माननीय विधायक की चर्चा कोयला क्षेत्र समेत पूरे झारखंड में हो गयी. वजह माननीय विधायक को दो अंक में मिले वोट और चुनाव के मौके पर निकाली गयी विशाल रैली. वर्ष 2005 के चुनाव में हार के बावजूद माननीय विधायक का हौसला और बढ़ा. माननीय विधायक अगले चुनाव की तैयारी में जुट गये. इसके साथ ही माननीय विधायक ने फिर पार्टी बदली. इस बार माननीय विधायक झारखंड नामधारी एक ऐसे दल में शामिल हुए, जिसके प्रमुख एक युवा हैं. माननीय विधायक ने इस युवा नेता को अपना तीसरा राजनीतिक गुरु बनाया. मगर इस नयी पार्टी में माननीय विधायक बहुत दिन नहीं रह पाये, क्योंकि उनके एक विरोधी और उन्हीं के इलाके के एक प्रभावशाली युवा नेता भी उसी पार्टी में शामिल हो गये. माननीय विधायक को लगा कि इस पार्टी से टिकट मिलना मुश्किल है. इसके बाद एक राष्ट्रीय पार्टी से अलग हुए नेताओं ने एक झारखंड नामधारी पार्टी बनायी. माननीय विधायक बिना समय गंवाये इस नयी पार्टी में शामिल हो गये. बड़ी बात यह कि इस पार्टी में माननीय विधायक को उनके जीवन के दूसरे राजनीतिक गुरु बड़बोले नेता सह विधायक महोदय की कृपा प्राप्त हुई. यह नयी पार्टी माननीय विधायक को रास आ गयी. माननीय विधायक ने पार्टी के आकाओं को खुश कर वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में टिकट लेने में कामयाबी हासिल की और विधायक भी बन बैठे.

वर्ष 2009 के चुनाव में माननीय विधायक द्वारा पानी की तरह पैसे बहाने की चर्चा पूरे झारखंड में हुई. माननीय विधायक ने अपने क्षेत्र के हजारों मतदाताओं के घरों में लिफाफा में पैसे डालकर भेजे. यह राशि एक करोड़ से अधिक थी. धीरे-धीरे माननीय विधायक पार्टी के प्रमुख फिनांसर बन बैठे. पार्टी के आला नेता माननीय विधायक के इशारों पर चलने लगे. माननीय विधायक गर्व से कहते रहे कि ‘‘पार्टी उनके पैसे से चलती है.’’ इस वर्ष हुए संसदीय चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ होने के बाद माननीय विधायक ने बिना समय गंवाये भाजपा का दामन थाम लिया.

भाजपा के जो नेता-कार्यकर्ता माननीय विधायक की रंगदारी को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ने का सपना संजोये हुए थे, आज वे हताश-निराश हैं. कोयला क्षेत्र के इन छोटे भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं को कौन बताये कि उनकी पार्टी के चंद बड़े नेताओं को माननीय विधायक ने किस तरह खुश किया. मामूली मजदूर से करोड़ों के मालिक बन बैठे माननीय विधायक बिना चुनाव लड़े जीत का जश्न मना रहे हैं. माननीय विधायक दावा करते हैं कि ‘‘जब तक उनके पास लक्ष्मी की ताकत है, कोई भी पार्टी उन्हें टिकट देगी. और हर हाल में वह विधायक का चुनाव जीतेंगे. मतदाताओं को खरीद लेंगे.’’ माननीय विधायक के इस दावे को खोखला नहीं माना जा सकता. माननीय विधायक की कामयाबी की कहानी बताती है कि उन्होंने जो चाहा, वह पाया. जो नहीं मिला, उसे छीन लिया. 17-18 साल पहले माननीय विधायक के पास साइकिल तक नहीं थी, आज एक दर्जन लग्जरी गाड़ियां हैं. माननीय विधायक ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर 100 करोड़ से अधिक की अचल संपत्ति अजिर्त की है. बेंगलुरू, चेन्नई, मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में भी माननीय विधायक की अचल संपत्तियां मौजूद हैं. धनबाद, रांची, देवघर से लेकर झारखंड व देश के कई इलाकों में माननीय विधायक ने अपने लोगों के नाम पर जमीन खरीद रखी है. यह अलग बात है कि इस अकूत संपत्ति को खड़ा करने के लिए माननीय विधायक को कई कोयला व्यवसायियों को धमकाना, मारना-पीटना पड़ा है. दो दर्जन से अधिक मुकदमे ङोलने पड़े हैं. जेल की हवा खानी पड़ी है. तो क्या हुआ कि माननीय विधायक को झारखंड के सर्वश्रेष्ठ विधायक का खिताब नहीं मिला, पुलिस रिकॉर्ड में माननीय विधायक पूरे झारखंड में सबसे अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज होनेवाले विधायक बने हुए हैं.

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