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काश! हम भी नक्सली ही बन जाते

अखबार में पूर्व नक्सलियों को नियुक्ति पत्र मिलने की खबर पढ़ी. पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि कितना अच्छा होता अगर हमने टीचर ट्रेनिंग की जगह नक्सली बनने की ट्रेनिंग ली होती. कम से कम दो साल से नौकरी की बाट तो जोहना नहीं पड़ता. हम सभी टेट पास अभ्यर्थियों की त्रसदी यही है कि […]

अखबार में पूर्व नक्सलियों को नियुक्ति पत्र मिलने की खबर पढ़ी. पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि कितना अच्छा होता अगर हमने टीचर ट्रेनिंग की जगह नक्सली बनने की ट्रेनिंग ली होती. कम से कम दो साल से नौकरी की बाट तो जोहना नहीं पड़ता. हम सभी टेट पास अभ्यर्थियों की त्रसदी यही है कि न तो प्रशासन को हमारी सुध है,न ही राज्य के राजनेताओं को. और तो और, मीडिया भी इस मामले में चुप्पी साधे बैठा है.

रांची में धरना-प्रदर्शन के बाद वहां के अभ्यर्थियों को तुरंत आनन-फानन में पोस्टिंग दे दी गयी और बाकी जिलों में स्थिति ज्यों की त्यों है. इससे हम क्या समङों? मुख्यमंत्री जी को सिर्फ रांची की ही जनता से सरोकार है, क्योंकि कल के लिए वो ही उनका वोट बैंक हैं. बाकी जिले के टेट पास अभ्यर्थी उनके लिए कोई मायने नहीं रखते.

सविता ओड़या, ई-मेल से

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