वाघा सीमा पर पाकिस्तानी क्षेत्र में रविवार को हुए आतंकी धमाके के बाद दर्जनों परिवारों में मातम पसरा है. सेना की मौजूदगी वाले अति सुरक्षित क्षेत्र में हुए इस धमाके के बाद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के तीन धड़ों ने अलग-अलग दावा किया है कि उन्होंने इस हमले को अंजाम दिया है. उनके दावों से इतना तो साफ है कि आतंकियों के विरुद्ध पाकिस्तानी सरकार और सेना की कार्रवाई के बावजूद न सिर्फ उनकी मौजूदगी कायम है, बल्कि अब उनमें पाकिस्तान के किसी भी इलाके में हमला करने की क्षमता भी है. इससे पाकिस्तानी सुरक्षा संस्थाओं द्वारा कुछ आतंकी गिरोहों पर रोक लगाने और कुछ को नजरअंदाज करने की रणनीति पर भी सवाल उठता है.
असल में पाकिस्तान में सक्रिय सभी आतंकी गिरोहों के तहरीक-ए-तालिबान से रिश्ते हैं और वे अल-कायदा की विचारधारा को मानते हैं. पिछले कुछ समय से कई आतंकी सरगना इसलामिक स्टेट के प्रति भी अपना समर्थन जाहिर कर चुके हैं. इन गिरोहों द्वारा सेना, शासन और आम नागरिकों पर लगातार हमले के बावजूद पाकिस्तानी सेना और राजनीति में ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उन्हें समर्थन देते रहे हैं. यही वह तबका है, जो पाकिस्तान में होनेवाले आतंकी हमलों के लिए भारत को जिम्मेवार ठहराने से भी बाज नहीं आता है. 2010 में पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई व पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ ने तहरीक-ए-तालिबान को अपना भाई बताते हुए आतंकियों की कई बातों से सहमति जतायी थी. ऐसे तत्व आज पाकिस्तान की मुख्यधारा में भरे पड़े हैं.
आतंक को प्रश्रय देने की नेतृत्व की रणनीति से अब पूरा पाकिस्तान लहूलुहान है. इससे दक्षिण एशिया में शांति और सुरक्षा को भी खतरा बढ़ रहा है. इसलिए इस भयावह हमले से सबक लेते हुए पाकिस्तानी सरकार, सेना एवं सिविल सोसायटी को न सिर्फ आतंकवाद को रोकने के लिए सक्रिय होना चाहिए, बल्कि भारत में आतंकियों को भेजने और उन्हें मदद करने के रवैये को भी विराम देना चाहिए. धमाका भारत की सीमा के बिल्कुल पास हुआ है, इसलिए भारत को भी कूटनीतिक कोशिशें तेज करते हुए आतंकवाद के विरुद्ध गंभीर रुख अपनाने के लिए पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाना चाहिए.