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गांधी, गांव और इश्तहार

बड़ा फर्क है गांधी और आंबेडकर की सोच में बसे गांव के बीच. गांधी के गांव में हिंसा है ही नहीं. गांधी की कल्पना में बसते गांव में भूमिहीन और भूस्वामी बिना झगड़े के रहते हैं. गांधी से किसी ने पूछा- बताइए, गांव के भूमिहीन और भूस्वामियों के बीच कैसे बराबरी स्थापित होगी? उनका जवाब […]

बड़ा फर्क है गांधी और आंबेडकर की सोच में बसे गांव के बीच. गांधी के गांव में हिंसा है ही नहीं. गांधी की कल्पना में बसते गांव में भूमिहीन और भूस्वामी बिना झगड़े के रहते हैं. गांधी से किसी ने पूछा- बताइए, गांव के भूमिहीन और भूस्वामियों के बीच कैसे बराबरी स्थापित होगी? उनका जवाब था- भूस्वामी स्वयं ही अपनी भूमि पर दावा छोड़ भूमिहीनों की मदद के लिए आगे आयेंगे! गांधी ऐसा सोच सकते थे, आदमी के भीतर छिपी सहज अच्छाई पर उनका दृढ़ विश्वास था.

आंबेडकर छिपी हुई अच्छाई पर नहीं, बल्कि प्रकट सच्चाई की बात कहते थे. देश के गांवों को देख उन्हें लगता था, यह तो एक कसाईखाना है! आंबेडकर के शब्द हैं- ‘एक भारतीय हिंदू गांव को गणराज्य कहा जाता है और वे इसके अंदरूनी ढांचे पर गर्व महसूस करते हैं, जिसमें न तो प्रजातंत्र है न समानता, स्वतंत्रता और न ही भाईचारा. यह उच्च वर्ण के लिए उच्चवर्ण की लोकशाही है. अछूतों के लिए यह हिंदुओं का साम्राज्यवाद है. यह अछूतों के शोषण का उपनिवेश है, जहां उन्हें कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं हैं. यह हिंदू कसाईखाना कितना दूषित है!’
भारतीय गांवों की बात हो तो केंद्र सरकार को गांधी याद आते हैं, आंबेडकर नहीं. गांधी और जेपी को याद करते हुए ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ की शुरुआत की गयी है. लेकिन सवाल दृष्टि और उसके प्रयोग का है. आदर्श ग्राम-योजना के दिशा-निर्देश के तौर पर केंद्र सरकार ने जो दस्तावेज जारी किया है, उसकी शुरुआत गांधी के उद्धरणों से होती है.
कुल चार उद्धरणों में पहले की शुरुआती पंक्तियां हैं- ‘आदर्श भारतीय गांव कुछ इस भांति बनाया जायेगा कि वहां पूरी साफ-सफाई होगी. कुटिया में पर्याप्त रोशनी और हवा का इंतजाम होगा. इसे उन्हीं चीजों से बनाया जायेगा, जो गांव के सीवान से पांच किमी के दायरे में मिल जायें. गांव की गलियां व सड़कें गैरजरूरी धूल-गर्द से मुक्त होंगी, कुएं होंगे और उन तक सबकी पहुंच होगी..’ ऐसा आदर्श गांव भला किसलिए?दस्तावेज में दर्ज गांधी के चौथे उद्धरण से इस प्रश्न का उत्तर मिलता है. यह उद्धरण कहता है- ‘हर देशप्रेमी का कर्तव्य है कि वह भारत के गांवों का पुनर्निर्माण कुछ इस तरह करे कि किसी व्यक्ति का गांवों में रहना वैसा ही आसान हो सके, जैसा कि शहरों में होता है.’ शब्द गांधी के हैं, अपनी योजना के लिए प्रयोग उन्हें नयी सरकार ने किया है, सो मानना चाहिए कि गांवों के बारे में सरकार की सोच भी यही है.
यह सोच ‘रहने की आसानी के बारे’ में है, यह आसानी कैसे पैदा होगी भला? दस्तावेज में इसे भी गांधी के ही एक उद्धरण से समझाने की कोशिश है- ‘गांवों का सुधार कुछ ऐसे किया जाये कि वहां अधिकतम संख्या में ग्रामोद्योग फले-फूलें, कोई अशिक्षित न हो, कुएं-तालाब व सड़कें साफ-स्वच्छ हों, सबको थोड़ी-थोड़ी मात्र में गाय का घी-दूध मिले’, आदि.सांसद आदर्श ग्राम योजना में दर्ज गांधी के शब्द स्वयं गांधी के नहीं लगते. वे हैं गांधी के ही, लेकिन उनका प्रयोग इस चतुराई से किया गया है कि वे पहली नजर में सरकारी स्वच्छता-अभियान और शहरीकरण के इश्तहार लगते हैं.
योजना की बनावट ऐसा मानने के लिए बाध्य करती है. योजना के अंतर्गत 2,65,000 ग्राम पंचायतों में 2024 तक 6,433 आदर्श ग्राम तैयार किये जाने हैं. लेकिन, योजना में आदर्श की कोई नयी सोच नहीं है, बल्कि पहले से चली आ रही योजनाओं को एक में समेटने की कवायद भर है. मसलन, इस योजना के लिए फंड इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मनरेगा और पिछड़े क्षेत्र के विकास के लिए दी जानेवाली विशेष अनुदान राशि से जुटाये जायेंगे. सांसद-निधि और कॉरपोरेट सोशल रेस्पांसबिलिटी फंड का भी जिक्र है और पंचायतों से हासिल राजस्व का भी. फिलहाल तीन वर्षो के लिए 12 हजार करोड़ रुपये इस योजना को अलग से दिये गये हैं.
मूल बात ‘ग्राम-स्वराज’ की है. क्या सांसद आदर्श ग्राम योजना गांव की कल्पना एक गणराज्य के रूप में करती है? नहीं, इस योजना में सबसे ऊपर हैं प्रधानमंत्री, क्योंकि योजना उनकी है. उसके बाद है केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रलय, क्योंकि योजना पर निगरानी उसी की है. फिर है सांसद, क्योंकि वही विकास-क्षेत्र को चिह्न्ति करेगा. सांसद के नीचे कलेक्टर हैं, क्योंकि वे ग्राम-पंचायत से हासिल विकास के ब्लूप्रिंट को वैज्ञानिक रूप देंगे. ग्राम-पंचायत की औकात तो इस योजना में पहले की तरह सबसे नीचे है. वह एक बैलगाड़ी है, जिसे ऊपर की फटकार से हांका जाना है.
यह योजना जेपी के जन्मदिन पर शुरू हुई थी. जेपी सर्वोदयी थे, जानते थे कि इस देश में गांव शहरों के उपनिवेश हैं. इसलिए, गांधी की तरह लोकतंत्र की जेपी की कल्पना में गांव शासन की बुनियादी और सर्वोच्च इकाई है और आंबेडकर की तरह जाति की जगह व्यक्ति का निर्माण गांव की सर्वोच्च जरूरत. इस आदर्श ग्राम योजना में सब कुछ है, बस ये ही दो बातें गायब हैं.

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