दो दिन पहले, दिल्ली में झारखंड की तीन लड़कियों को बेचनेवाले गिरोह को पकड़ लिया गया. दिल्ली पुलिस ने खबर मिलते ही विशेष दल का गठन कर कार्रवाई की. इन लड़कियों में एक नाबालिग थी.
अगर पुलिस चुस्ती नहीं दिखाती, तो ये लड़कियां बिक गयी होतीं. गिरोह के सदस्य उन्हें 50-50 हजार रुपये में बेचना चाहते थे. यह दुखद है कि दिल्ली में लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जिनमें झारखंड की लड़कियों को मारा-पीटा जाता है, उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है, उन्हें घर में बंद कर दिया जाता है, कभी-कभार उन्हें बेच दिया जाता है और उनका शारीरिक शोषण किया जाता है. इसके बावजूद इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पाता. आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में पुलिस जिन लड़कियों को दलालों के चंगुल से बचाती है, उनमें अधिकतर झारखंड की आदिवासी लड़कियां रहती हैं.
इस समस्या के असली कारणों को तलाशना होगा. सच यह है कि अपने राज्य में इन लड़कियों को रोजगार नहीं मिलता. काम की तलाश में ये बाहर जाती हैं. कहीं ईट्ट भट्ठे में काम करती हैं तो कहीं घरों में साफ-सफाई का. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि झारखंड सरकार राज्य बनने के बावजूद उन्हें रोजगार नहीं दे पायी. मजबूर होकर, अपना और परिवार का पेट पालने के लिए इन लड़कियों को बाहर जाना होता है. वहां जाकर वे चंगुल में फंस जाती है. बेहतर तो यह होता कि इन लड़कियों की झारखंड में पढ़ाई की पूरी व्यवस्था की जाती.
फिर इन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिलाया जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. सरकार को दो बिंदुओं पर काम करना होगा. पहला, लड़कियां बाहर न जायें और उन्हें अपने राज्य में ही काम मिले. ऐसा तभी होगा जब राज्य में विकास होगा. इन लड़कियों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था करनी होगी. दूसरा, दलालों का सफाया करना. प्लेसमेंट एजेंसियां की आड़ में जो धंधा चल रहा है, उसे बंद कराना होगा. ये दलाल ज्यादातर स्थानीय ही होते हैं. ये लड़कियों और उनके परिजनों को फुसलाते हैं, फिर लड़की को लेकर दिल्ली चले जाते हैं. ऐसे दलालों को पकड़ना होगा, दंडित करना होगा. जो दलाल पकड़ा भी जाता है, वह आसानी से छूट जाता है. पुलिस को सक्रिय होना होगा. तभी इसका समाध़ान निकलेगा.