झारखंड के 15-16 बीएड कॉलेज आगामी शैक्षणिक सत्र में छात्रों का दाखिला नहीं ले पायेंगे. बीएड कॉलेजों की गुणवत्ता पर सवाल उठाने वाली शिवशंकर मुंडा की याचिका पर सुनवाई के फलस्वरूप यह स्थिति आयी.
हाइकोर्ट के आदेश पर बनी निरीक्षण समिति ने बीएड कॉलेजों का निरीक्षण कर जो रिपोर्ट सौंपी थी, उस पर बहुत पहले सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी. कमियों को पूरा करने के लिए कॉलेजों को छह माह की मोहलत दी गयी थी. पुन: तीस दिनों का अतिरिक्त समय दिया गया था. इसके बाद भी जब बीएड कॉलेजों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, तो गत पांच अगस्त को एनसीटीइ के पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में प्रदेश के बीएड कॉलेजों में शैक्षणिक सत्र 2015-16 की मान्यता वापस लेने का फैसला हुआ.
कॉलेजों को परवाह होती तो दी गयी मोहलत कमियों को दूर करने के लिए काफी थी. एनसीटीइ द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि सरकार की एक अंडरटेकिंग (लिखित वादा) इस स्थिति से बचा सकती थी. सरकार को लिख कर देना था कि शिक्षकों और बुनियादी संरचना से संबंधित कमियों को दूर कर लिया जायेगा.
दूसरी ओर सरकार का कहना है कि एनसीटीइ उसे लिख कर दे, तभी वह कोई अंडरटेकिंग दे सकती है. जबकि एनसीटीइ के अनुसार वह रिपोर्ट कॉलेजों को देती है तथा इसकी प्रति मानव संसाधन विकास विभाग को देती है. एनसीटीइ की अपनी एक सत्ता है तथा सरकार तो सत्ता है ही. सत्ता प्रतिष्ठानों की संवादहीनता का यह पहला उदाहरण नहीं कि छात्रों को उनका खमियाजा भुगतना पड़ा है. मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के मामले में भी झारखंड में यह बात सामने आ चुकी है.
दरअसल, जिन कमियों के कारण बीएड कॉलेजों के खिलाफ यह कठोर फैसला आया है, वह एक दिन की स्थिति नहीं है. सवाल है कि संसाधन संपन्नता की जिन शर्तो के आधार पर कॉलेजों को मान्यता दी जाती है, वह कैसे एक साथ खत्म हो जाती है. यह पड़ताल का विषय है. इससे भी बुरी स्थिति तो आने वाली है, जब जस्टिस वर्मा कमेटी की 166 पन्ने की रिपोर्ट के आधार पर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पर अमल होगा. कहा जा रहा है कि इस पर सख्ती से अमल हुआ, तो वर्ष 2015-16 में देश भर के बीएड कॉलेजों में दाखिला नहीं हो पायेगा.