‘आइ डोंट अंडरस्टैंड माइ चाइल्ड’ से शुरू होनेवाली अमेरिकी कवयित्री एलिजाबेथ जेनिंग्स की कविता ‘आइ कांट अंडरस्टैंड माइसेल्फ’ पर जाकर विराम पाती है, ठीक उसी तरह जैसे रंजीत सिंह उर्फ रकीबुल हसन के खिलाफ तारा शाहदेव के अभियान छेड़े जाने से पूर्व कोई उसे पहचानन नहीं रहा था.
पर, गिरफ्तारी के साथ ही अंधकार की ओट में पड़े एक से एक सफेदपोश चेहरे तफ्तीश की रोशनी में नहा उठे. हालांकि उद्धृत कविता पीढ़ियों के अंतर से उपजनेवाली संवादहीनता पर केंद्रित है, पर इसका संदर्भ अभी रंजीत से बेहद मिलता है.
जनतंत्र का हर पाया उसके कारोबार को टिकाये हुए था, उसके ठाठ को सहारा दे रहा था. पिछले 24 अगस्त को जब वह रांची से भाग रहा था तो एक सरकारी अंगरक्षक ने लाल बत्ती में उसे दिल्ली पहुंचाया. अंगरक्षक को बाकायदा कमान काट कर दिया गया और उसे कार में दिल्ली पहुंचाने का आदेश तक दिया गया. 36 सिम, 15 मोबाइल, दो एयर गन और तमाम हाइ फाइ तकनीकी उपकरण जिसके यहां से छापेमारी में मिलते हैं, क्या उसने किसी जन कल्याण के काम के लिए इस साजोसामान को रखा हुआ था? उसके संपर्क में आये पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नामधारी हों या मौजूदा मंत्री हाजी हुसैन अंसारी, क्या उसकी असलियत को जाने बिना उसके संपर्क में थे! ऐसा कैसे हो सकता है कि जिम्मेवार और महत्वपूर्ण हैसियत रखनेवाले लोग आंख मूंद कर किसी के भी कहे पर कुछ कर दें.
किसी के भी आमंत्रण पर कहीं चल जायें. यदि इस जनतंत्र में इतनी ही सदाशयता बची होती तो पलामू के डिब्बा महली या किसी अन्य को अपनी रुक गयी वृद्धा पेंशन को दुबारा जारी कराने के निमित्त अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए नौ माह तक प्रखंड का चक्कर नहीं लगाना पड़ता. वैसे कार्रवाई के रूप में जिस एक सिपाही को निलंबित किया गया है वह तो शायद छोटी मछली की भी हैसियत रखता होगा इसमें संदेह है, पर बड़ी मछलियां तो चमचमाते, विशाल अक्वेरियम में छल-छल कर रही हैं. इस लंबी और चुनौतीपूर्ण लड़ाई को जारी रखने के लिए जिस साहस की जरूरत है वह तारा शाहदेव में है तो, पर उसके अभियान को शिथिल करने के लिए प्रलोभन भरी स्थितियों से चौंकन्ना रहना होगा.