देश के हर परिवार को बैंकिंग सुविधाओं से जोड़नेवाली ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ वित्तीय समावेशीकरण की दिशा में बड़ी पहल है.
गुरुवार से शुरू हुई इस योजना की घोषणा प्रधानमंत्री ने अपने प्रथम स्वतंत्रता दिवस संबोधन में की थी, जबकि इसकी अनुशंसा इस वर्ष जनवरी में रिजर्व बैंक द्वारा गठित नचिकेत मोर पैनल द्वारा की गयी थी. योजना के तहत 7.5 करोड़ परिवारों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है. पहले ही दिन देश में 60 हजार से अधिक शिविरों के माध्यम से एक करोड़ से अधिक खाते खुलने की उम्मीद है.
अभी देश में 1,15,082 बैंक शाखाएं और 1,60,055 एटीएम केंद्र कार्यरत हैं. इनमें से 43,962 शाखाएं और 23,334 एटीएम केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. इसके बावजूद करीब 42 फीसदी अबादी बैंकिंग व्यवस्था से बाहर है और अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए कजर्दाताओं पर आश्रित है. एक आकलन के अनुसार, इस समय छह करोड़ ग्रामीण और 1.5 करोड़ शहरी परिवारों के पास कोई खाता नहीं है. ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना को प्राथमिकता के रूप में लागू करना स्वागतयोग्य है. जन-धन योजना के तहत खोले गये खातों के साथ बीमा, ¬ण और अनुदान जैसी सुविधाओं को जोड़ कर इसे और अधिक उपयोगी बना दिया गया है.
लेकिन, महज खाता खोल देने से गरीबों का वित्तीय समावेश नहीं हो जाता है. सरकार को गरीबों की आय बढ़ाने और बचत की क्षमता के विकास पर भी ध्यान देना होगा. बैंकों को गरीबों के अनुकूल बचत योजनाएं विकसित करनी होगी. कुछ जानकारों के मुताबिक, देश में अनौपचारिक वित्त बाजार कम-से-कम 30 खरब रुपये का है. गरीब और बिना खातावाले लोग अवैध चिट फंडों और छोटे कजर्दाताओं पर इसलिए भी निर्भर रहते हैं, क्योंकि बैंक उन्हें कर्ज देने या उनसे छोटी रकम की बचत जमा लेने में आनाकानी करते हैं. इस योजना की पूरी जिम्मेवारी सार्वजनिक बैंकों पर है, जबकि समावेशीकरण की इतनी बड़ी योजना के लिए निजी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को भी साथ लेना चाहिए था. सरकार को यह भी कोशिश करनी चाहिए कि लोग अपने खाते को सक्रिय रखें, अन्यथा ये खाते महज आंकड़ों के रूप में बैंकों के कंप्यूटर में बोझ बन कर रह जायेंगे.