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किसकी हिम्मत जो कलाली बंद करा दे!

लल्लन की चाल देख कोई अनजान व्यक्ति कहेगा कि वह किसी बड़े अभियान पर निकला है. लेकिन गांव के लोग जानते हैं, लल्लन की मंजिल छतीस बाबू की कलाली तक है. वैसे गांव में अब मदिरा की उपलब्धता सहज है, लेकिन छतीस बाबू की ‘शुद्ध देसी बियर बार’ नामक कलाली की बात ही कुछ और […]

लल्लन की चाल देख कोई अनजान व्यक्ति कहेगा कि वह किसी बड़े अभियान पर निकला है. लेकिन गांव के लोग जानते हैं, लल्लन की मंजिल छतीस बाबू की कलाली तक है. वैसे गांव में अब मदिरा की उपलब्धता सहज है, लेकिन छतीस बाबू की ‘शुद्ध देसी बियर बार’ नामक कलाली की बात ही कुछ और है. कलाली के गेट पर ही उसकी अपने मित्र सरधुवा से मुलाकात होती है.

‘क्या लल्लन भाई आज देर से पहुंचे हो!’ ‘अब क्या बतायें सरधुवा भाई, रास्ते में ऊ नेता नहीं है बेत्तर बाबा, वही मिल गये. समझाने लगे कि शराब मत पियो, बर्बाद हो जाओगे!’ ‘पूछो नहीं यार! बेत्तर बाबा छह महीना से कलाली हटवाने के लिए कहां कहां चिट्ठी नहीं भेजे हैं.’ खैर, दोनों कलाली के अंदर घुसते हैं. पीने-पिलाने का पहला दौर समाप्त कर सरधुवा तीन-चार लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच कर बोलता है, ‘हाथ में दारू है, झूठ नहीं बोलेंगे, उ दिन याद करो जब यहां से डेढ़ कोस दूर परसादी बाबू के कलाली जाते थे. जाते थे पैदल और रिक्शा पे चढ़के आना पड़ता था. एक पोलोथीन दारू का तीन रुपया ज्यादा भी लगता था. पैसा देने में थोड़ी सी आनाकानी करने पर बड़ी पिटाई होती थी. यहां तो उधारी भी चलता है.

बाबा बेत्तर यह कह कर कि कलाली के बगल में स्कूल है, ठाकुरबाड़ी है, कलाली हटवा देगा? कभी नहीं हटने देंगे!’ अब लल्लन शुरू हो जाता है, ‘बात पैसा या उधारी का नहीं! छतीस बाबू ने सुविधा देकर हमारा मन बढ़ाया है.

छतीस बाबू का जिंदाबाद होना चाहिए.’ जिंदाबाद के नारे लगते है. तभी लल्लन का दस वर्षीय पुत्र छुट्टन वहां आता है. ‘यहां क्यों आया है रे?’ ‘पप्पा, घर में राशन नहीं है इसलिए मम्मी सौ रुपया मांग रही है.’ ‘पैसे क्या पेड़ में उगते हैं? मम्मी ने कहा और चला आया!’ लल्लन अपना बटुआ निकालता है, उसमें 10 के कुछ नोट हैं और कुछ सिक्के. लल्लन ने 10 रु पये के तीन नोट देकर कहा, ‘चल निकल.’ ‘पप्पा! मम्मी ने तो सौ रु पये मांगे हैं.’ ‘जा मम्मी को कहना इसी में काम चला लेगी. कल काम पर जाऊंगा तो पूरा राशन ले आऊंगा.’ छुट्टन जाने लगता है, लल्लन उसे बुलाता है और दो रु पये का सिक्का देकर बोलता है, ‘ले लेमनचूस खा लेना और छुटकी को भी जरूर देना. मम्मी से कहना, दाल, भात और आलू की तरकारी बना कर रखेगी. प्याज का सलाद जरूर बनायेगी. नहीं ता खैर नहीं!’ कुछ देर और बैठकी के बाद लल्लन पूछता है, ‘क्या हिसाब हुआ छतीस बाबू,’ छतीस बाबू बोलते हैं, ‘30 दारू का, 10 झाल मुढ़ी का, पांच का पुड़िया. टोटल 45 रु पये.’ लल्लन नोट और सिक्के गिनता है और 40 रु पये देकर कहता है, ‘पांच रुपया हिसाब में लिख लेना!’ करीब दो घंटे बाद लल्लन के घर के पास भीड़ जमा थी. उसकी पत्नी दर्द से कराह रही थी. सभी कह रहे थे, ‘बेचारी ने दाल-भात तो बना ही दिया था, आलू और प्याज का जुगाड़ नहीं हो पाया!’

ऋषव मिश्र ‘कृष्णा’

प्रभात खबर, भागलपुर

naughachiaoffice@gmail.com

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