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खिलाड़ी खेल की गंभीरता समझें

बीसीसीआइ को वनडे, टेस्ट और 20-20 के लिए अलग-अलग टीम बनानी होगी. कोई कितना भी महान खिलाड़ी क्यों न हो, क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में फिट नहीं बैठ सकता. एक-दो खिलाड़ी इसके अपवाद हो सकते हैं. इंग्लैंड में टेस्ट में भारत की 3-1 से शर्मनाक हार. किसी ने ऐसी हार की कल्पना नहीं की थी. […]

बीसीसीआइ को वनडे, टेस्ट और 20-20 के लिए अलग-अलग टीम बनानी होगी. कोई कितना भी महान खिलाड़ी क्यों न हो, क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में फिट नहीं बैठ सकता. एक-दो खिलाड़ी इसके अपवाद हो सकते हैं.

इंग्लैंड में टेस्ट में भारत की 3-1 से शर्मनाक हार. किसी ने ऐसी हार की कल्पना नहीं की थी. खास तौर पर तब, जब दूसरे टेस्ट में भारत ने इंग्लैंड को हरा कर 1-0 की बढ़त ले ली थी. इस जीत से भारत का मनोबल बढ़ना चाहिए था. हुआ उलटा. दिमाग इतना चढ़ गया कि उसके बाद तीसरे, चौथे और पांचवें टेस्ट में भारत की दुर्गति कर दी. कभी पारी की हार तो कभी 94 पर ऑल आउट, तीन दिन में टेस्ट में हार. एक बार फिर साबित हुआ कि भारतीय खिलाड़ी घर के शेर हैं. जिस भारतीय टीम को दुनिया की मजबूत टीमों में गिना जाता है, जब वह भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर खेलती है, तो अपवाद को छोड़ कर सिर्फ हार मिलती है. अंतिम बार 2011 में भारत ने वेस्टइंडीज में सीरीज (1-0) जीती थी. उसके बाद विदेशों में खेले गये मैचों को देखें, तो इंग्लैंड ने 4-0 से, दक्षिण अफ्रीका ने 1-0 से, न्यूजीलैंड ने 1-0 से और इस बार फिर इंग्लैंड ने 3-1 से हरा दिया. साफ है कि हम तेज विकेट पर या फिर जहां गेंद स्विंग करती है, खेल नहीं सकते. तीन या चार दिन में मैच हार जाते हैं. दोषी वे खिलाड़ी हैं जो खेलते नहीं, ठीकरा फूटता है दूसरों पर. किसी की तो गर्दन पकड़ेंगे. इस बार निशाने पर है मुख्य कोच.

बीसीसीआइ यह मानने को तैयार नहीं है कि खिलाड़ियों ने खराब खेल खेला. गलती निकाल रहा है मुख्य कोच (फ्लेचर) में. जब टीम इंडिया जीतती है, श्रेय कप्तान और खिलाड़ियों को मिलता है. जब हारती है तो सारा दोष कोच पर. अप्रैल 2011 से कोच बनने के बाद इसी फ्लेचर ने भारतीय टीम को लगातार आठ सीरीज में जीत दिलायी थी. अब जब हारे तो फ्लेचर के ऊपर रवि शास्त्री को बैठा दिया गया. शास्त्री निदेशक बने हैं. मैच कोच नहीं खेलता. मैदान में 11 खिलाड़ियों को ही बेहतर प्रदर्शन करना होता है. अगर किसी टीम के 11 में छह खिलाड़ी शून्य पर आउट होते हैं, तो दुनिया का कोई भी कोच, कोई भी कप्तान, अपनी टीम को बचा नहीं सकता. खिलाड़ियों को बेहतर खेलना होगा. शास्त्री हों या संजय बांगर या भरत अरुण, रातों-रात चमत्कार नहीं कर सकते. पहले खिलाड़ियों को बताना होगा कि वे या तो बेहतर प्रदर्शन करें या बाहर जाने के लिए तैयार रहें. कोटा सिस्टम खत्म करना होगा.

अब सचिन, द्रविड़, लक्षमण के नहीं होने का रोना रोने से लाभ नहीं होगा. वे रिटायर हो चुके हैं. उसके बाद युवा टीम आ चुकी है. अनुभव नहीं है, यह कहने से भी काम नहीं चलेगा. टीम इंडिया के लिए खेलना है तो खिलाड़ियों में संघर्ष करने की क्षमता होनी चाहिए, जीत का जज्बा होना चाहिए. दुनिया के हर मैदान पर खेलने के लिए तैयार रहना चाहिए. ठीक है क्रिकेट हारजीत का खेल है, लेकिन सिर्फ हार का खेल नहीं है. हार सकते हैं, लेकिन मुकाबला कर. टीम इंडिया तो अंतिम टेस्ट में दूसरी पारी में सिर्फ 29.2 ओवर में ही सिमट गयी. पहली पारी में 61 ओवर. पूरे मैच में जो टीम सिर्फ 90 ओवर खेल पाती हो, उसके खिलाड़ियों पर टेस्ट खेलने का प्रतिबंध लगना चाहिए. सच यह है कि इन खिलाड़ियों ने आइपीएल के इतने मैच खेले, 20-20 ओवर के इतने मैच खेले कि भूल गये कि टेस्ट मैच कैसे खेला जाता है. पांच दिन मैदान में रहना होगा, अगर यह बात दिमाग में घुस गयी, तो आप मैच जीत नहीं सकते. भारतीय खिलाड़ियों में लंबा खेल (टेस्ट) खेलने की क्षमता खत्म होती जा रही है. यह क्रिकेट के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

जब सचिन टेस्ट-वनडे से विदा हुए, तो लगा कि विराट कोहली उस गैप को भरेंगे. शुरू में कोहली ने ऐसा ही खेल दिखाया था. लेकिन पांच टेस्ट में सिर्फ 134 रन. क्या हो गया इस महान खिलाड़ी को? ध्यान लगाना चाहिए खेल पर, लेकिन लग रहा है कहीं और. बीसीसीआइ ने अनुष्का शर्मा को साथ रखने की अनुमति दे दी है. हो सकता है कि अनुष्का उनकी मंगेतर हों/गर्लफ्रेंड हों, लेकिन इसका असर खेल पर नहीं पड़ना चाहिए. टीम इंडिया के खिलाड़ियों को कड़े अनुशासन में रहना होगा, तभी टीम का भला हो सकता है. सिर्फ कोहली ही क्यों, अन्य खिलाड़ी भी सराहने लायक नहीं हैं. किसी ने एक-दो में बेहतर खेला, उसके बाद उनका भी वही हाल. पुजारा को मैदान पर टिकनेवाला खिलाड़ी कहा जाता है. उनका भी वही हाल है. अगर भुवनेश्वर कुमार (मूलत: गेंदबाज) ने पहले दो मैचों में अच्छी बल्लेबाजी नहीं की होती, तो संभव है कि टीम इंडिया 5-0 से हार कर लौटती.

अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा. वनडे, टेस्ट और 20-20 के लिए अलग-अलग टीम बनानी होगी. कोई कितना भी महान खिलाड़ी क्यों न हो, क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में फिट नहीं बैठ सकता. एक-दो खिलाड़ी अपवाद हो सकते हैं. इसलिए लंबी योजना बनानी होगी. अगर शास्त्री को मौका दिया गया है, तो पूरा मौका देना चाहिए. ऐसा न हो कि सिर्फ डैमेज कंट्रोल के लिए, खानापूर्ति के लिए, विरोध को कम करने के लिए यह बदलाव किया गया हो.

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

anuj.sinha@prabhatkhabar.in

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