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संबंधों में मजबूती की उम्मीद

अजीत रानाडे सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन editor@thebillionpress.org दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों- अमेरिका और भारत के बीच की दूरी कोई दस हजार मील है. ढाई सदी पहले अमेरिका का स्वतंत्रता युद्ध टैक्स विद्रोह और बोस्टन बंदरगाह पर चाय की पेटियां डुबोने के साथ शुरू हुआ था. वे पेटियां भारत से गयी थीं, जो उस […]

अजीत रानाडे
सीनियर फेलो,
तक्षशिला इंस्टीट्यूशन
editor@thebillionpress.org
दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों- अमेरिका और भारत के बीच की दूरी कोई दस हजार मील है. ढाई सदी पहले अमेरिका का स्वतंत्रता युद्ध टैक्स विद्रोह और बोस्टन बंदरगाह पर चाय की पेटियां डुबोने के साथ शुरू हुआ था. वे पेटियां भारत से गयी थीं, जो उस समय एक उपनिवेश था. स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में जोरदार भाषण देकर वैश्विक मंच पर अपनी धमक दी थी. अमेरिका के नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रमुख नेता मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी से प्रभावित थे.
हाल की बात करें, तो अमेरिका ने 2005 में ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता कर दुनिया के ताकतवर देशों से अलग रुख लेते हुए भारत को तीन दशक पुराने परमाणु बहिष्कार से निकाला था. क्रय शक्ति समानता के हिसाब से दोनों देश दुनिया के तीन शीर्षस्थ अर्थव्यवस्थाओं में हैं. भारत के असाधारण सामाजिक, सांस्कृतिक और नस्लीय विविधता से अगर किसी पश्चिमी देश की तुलना हो सकती है, तो वह अमेरिका ही है.
साधारण शब्दों में कहें, तो अमेरिका इसलिए भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह उन कुछ देशों में है, जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष बहुत अधिक (लगभग 25 अरब डॉलर) है. वस्तुओं और सेवाओं में दोनों देशों का परस्पर व्यापार लगभग 150 अरब डॉलर है, जो आगामी वर्षों में आसानी से दोगुना हो सकता है. भारत में अमेरिकी निवेश करीब 50 अरब डॉलर का है, तो भारत का भी अमेरिका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 10 अरब डॉलर है, जो बढ़ रहा है. भारतीय अमेरिकी तबका वहां अपेक्षाकृत समृद्ध समुदाय है, जो सरकार और स्थानीय राजनीति में लगातार अहम भूमिका निभा रहा है.
अगले सप्ताह होनेवाली राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के संदर्भ में इस पृष्ठभूमि को रेखांकित करना समीचीन है. वे अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियमों में से एक मोटेरा का उद्घाटन करेंगे. वे दिल्ली में भी नीति-निर्धारकों, व्यापार प्रतिनिधियों और राजनेताओं से विचार-विमर्श करेंगे. कुछ महीने पहले टेक्सास में वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक बड़ी रैली को संबोधित कर चुके हैं. इससे दोनों नेताओं की नजदीकी का पता चलता है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 13 अमेरिकी राष्ट्रपतियों में से सात ने भारत की यात्रा की है.
अपने राष्ट्रपति चुनाव से कुछ महीने पहले ही ट्रंप का भारत आना बड़ी बात है. कुछ दिन पहले ही वे बहुत तीखे महाभियोग प्रक्रिया से जीतकर निकले हैं. ऐसा इंगित होता है कि वे चीन को एक व्यापार समझौता करने पर सफलतापूर्वक मजबूर कर चुके हैं, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार घाटे को कम करना है. दरअसल, इस समझौते का पहला चरण एक युद्धविराम जैसा है. इससे वैश्विक बाजारों की चिंता कम हुई है (हालांकि कोरोना वायरस एक नया खतरा बनता दिख रहा है).
राष्ट्रपति ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको के साथ भी एक अनुकूल त्रिपक्षीय व्यापार समझौता किया है. संभवतः 50 सालों में सबसे कम बेरोजगारी दर के साथ अभी अमेरिकी अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में दिख रही है. वहां इतनी नौकरियां उपलब्ध हो रही हैं कि कुछ राज्यों में कैदियों को भी रोजगार दिया जा रहा है. नौकरियों की गुणवत्ता एक अलग विषय है. और, स्टॉक मार्केट नयी ऊंचाइयां छूता जा रहा है. पर, यह नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि अमेरिका में और बाहर राष्ट्रपति ट्रंप के कई धुर विरोधी हैं तथा अमेरिका का राजनीतिक माहौल ध्रुवीकृत है.
ऐसे में ट्रंप एक विजयी भाव के साथ आ रहे हैं और भारत उनके भव्य स्वागत की तैयारी कर रहा है. ऐसे संकेत थे कि भारत अमेरिका के साथ छोटे स्तर पर मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए तैयार है.
भारत ने पहले ही दुग्ध उत्पादों और अनेक कृषि उत्पादों के आयात पर विशेष छूट देने की घोषणा कर दी है. विडंबना ही है कि भारत दुग्ध उत्पादों के मामले में उदारता दिखाने के लिए तैयार है, जो कि चीन समेत 16 देशों के क्षेत्रीय समझौते से अलग होने का एक कारण था. भारत मुर्गीपालन से संबंधित उत्पादों, खासकर मुर्गे की टांगों के आयात पर भी नरमी बरतने के लिए तैयार है.
बदले में भारत को जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रीफेरेंसेज (जीएसपी) के तहत अमेरिकी बाजारों में मिलनेवाले शुल्क छूटों की बहाली की उम्मीद है. इन छूटों के हटने से वस्त्र जैसे क्षेत्रों में बांग्लादेश और वियतनाम से भारतीय वस्तुओं को कठिन स्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. भारत अमेरिकी उत्पादकों से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल के आयात का प्रस्ताव भी रख रहा है. साथ ही, व्यापार अधिशेष को बड़ी रक्षा खरीदों से संतुलित किया जा सकता है. संभवतः इस दौरे में इस संबंध में घोषणाएं हो सकती हैं.
लेकिन ट्रंप द्वारा किसी तरह के व्यापार समझौते से इनकार से व्यापारिक स्थिति में फिलहाल बदलाव की उम्मीदें बहुत कम हैं तथा अब ऐसा कोई समझौता नवंबर में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही होने की आशा की जा सकती है. लेकिन यात्रा के दौरान बातचीत से उसका एक आधार तैयार हो सकता है.
बीते दो दशकों में भारत गुटनिरपेक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से दूर हुआ है, हालांकि रूस से इसकी हमेशा से खास नजदीकी रही थी. परमाणु समझौता ऐतिहासिक पहल था और इससे अमेरिकी परमाणु उद्योग को फायदा होने की उम्मीद थी, पर अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है.
कई अन्य विवादित मसलों, खासकर ईरान, अफगानिस्तान और रूस के रिश्तों से जुड़े, को भी सुलझाया जाना है. आखिर भारत अमेरिकी प्रशासन की नाराजगी के बिना इन तीन देशों से नजदीकी व दोस्ती कैसे रख सकता है? अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ बने नये गुट ‘चतुष्क’ में भी अहम भागीदार है. इस बाबत बातचीत एक दशक पहले शुरू हुई थी तथा इस महत्वपूर्ण समूह के तहत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक भूमिका को रेखांकित किया गया है.
इस प्रकार, भारत के गुटनिरपेक्ष रुख को बरकरार रखने की निरंतर और वैध इच्छा तथा चीन समेत बड़ी शक्तियों के साथ दोस्ताना रखने (एक प्रकार से ‘जगत-मित्र’ होने) का इरादा अमेरिका से नजदीकी व्यापारिक संबंध रखने से खतरे में नहीं पड़ता. अमेरिका एक अलहदा पश्चिमी देश है, जिसकी आबादी युवा है, जिसकी राजनीति गतिशील व ठोस लोकतांत्रिक है, तथा जो मौजूदा बयानबाजियों के बावजूद अभी भी प्रवासियों का स्वागत करता है और आर्थिक-राजनीतिक आजादी का मजबूत पक्षधर है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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