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जलवायु परिवर्तन की चेतावनी

हिमांशु ठक्कर पर्यावरणविद् ht.sandrp@gmail.com ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (जीसीआरआई) में भारत को जलवायु परिवर्तन के मामले में कमजोर देशों में पांचवें स्थान पर रखा गया है. हालांकि, इस रिपोर्ट के तैयार होने में सारे पैमानों को शामिल नहीं किया गया है और कुछ बड़ी गलतियां भी नजर आती हैं. लेकिन इतना तो जरूर है कि […]

हिमांशु ठक्कर
पर्यावरणविद्
ht.sandrp@gmail.com
ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (जीसीआरआई) में भारत को जलवायु परिवर्तन के मामले में कमजोर देशों में पांचवें स्थान पर रखा गया है. हालांकि, इस रिपोर्ट के तैयार होने में सारे पैमानों को शामिल नहीं किया गया है और कुछ बड़ी गलतियां भी नजर आती हैं.
लेकिन इतना तो जरूर है कि यह रिपोर्ट न सिर्फ भयावह आंकड़ों को दिखाती है, बल्कि हम सभी को चेताती भी है कि अगर हम अब भी नहीं सुधरे, तो समस्या के और भी गंभीर होने की आशंका बलवती होती चली जायेगी और फिर पूरा देश भयंकर आपदाओं की चपेट में आता चला जायेगा.
अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण थिंक टैंक ‘जर्मनवॉच’ द्वारा जारी इस रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि साल 2017 में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित मौसम की घटनाओं के कारण भारत अपने 15वें रैंक से नीचे उतरकर साल 2018 में पांचवें स्थान पर पहुंच गया है. इस रिपोर्ट में दो तरह के रैंक दिये गये हैं.
एक तो यह कि साल 2018 में पर्यावरणीय गतिविधियाें के चलते भारत में जितना नुकसान हुआ, उस मामले में भारत पांचवें स्थान पर है. लेकिन दूसरा, ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स ने जो पिछले बीस साल के नुकसान का लेखा-जोखा दिया है, उसमें भारत शीर्ष दस देशों में भी नहीं है. एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि साल 2018 की प्राकृतिक घटनाओं से भारत में जो नुकसान का डेटा है, वह भी कुछ ही क्षेत्रों से लिया गया है. हालांकि, रिपोर्ट बनानेवालों ने इस बात को माना है कि कुछ क्षेत्रों के आंकड़ों का ही इस्तेमाल किया गया है.
भारत में साल 2018 में जो भी आपदा की घटनाएं हुईं, जिनकी वजह से भारत इस कमजोर सूची में पांचवें स्थान पर आया है, उसमें एक तो केरल में आये बाढ़ को शामिल किया गया है, दूसरा यह कि उस दौरान भारत में मॉनसून में बहुत परिवर्तन हुआ, जिसकी वजह से चेन्नई में सूखा पड़ा और मराठवाड़ा में पानी की बहुत दिक्कत आयी थी.
उत्तर भारत की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी, उस क्षेत्र ने भी काफी विभीषिकाओं का सामना किया. इसके अलावा, तीसरी बात यह थी कि दो बड़े तूफान आये थे, तितली और गाजा, जिसमें बहुत जान-माल का नुकसान हुआ था. आखिर में, भयानक गर्मी और हीट स्ट्रोक को भी शामिल किया गया है. इन्हीं सब कारणों की वजह से अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण थिंक टैंक ‘जर्मनवॉच’ ने अपनी रिपोर्ट में भारत को जलवायु परिवर्तन के मामले में कमजोर देशों में पांचवां स्थान दिया है.
यहां एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि पर्यावरण गतिविधियों के चलते पैदा हुईं आपदाओं में इस दौरान भारत में जितने लोगों की जान गयी, वह संख्या सूूची के बाकी शीर्ष देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है. यानी दुनिया के जितने भी देश जलवायु परिवर्तन के मामले में कमजोर हैं, उन सबके मुकाबले सबसे ज्यादा लोग भारत में मारे गये हैं.
उनके आंकड़ों के हिसाब से 2,081 लोग मारे गये थे भारत में साल 2018 में और बाकी जो नुकसान हुआ, उसको आर्थिक पैमाने पर रखा गया है. आर्थिक नुकसान के मामले में भी भारत का नुकसान ज्यादा है बाकी देशों के मुकाबले. भारत का वह नुकसान 37,808 मिलियन डॉलर रहा है. ये सारे आंकड़ें दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा हैं. लेकिन, जान के नुकसान को प्रति लाख के पैमाने पर रखा गया है और आर्थिक नुकसान को जीडीपी के आधार पर, इसलिए जलवायु परिवर्तन के मामले में कमजोर देशों में भारत को पांचवां स्थान दिया गया है.
इस रिपोर्ट में कुछ गंभीर गलतियां भी हुई हैं. मसलन, केरल की बाढ़ को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि 80 बांध टूट गये. जबकि सच्चाई यह है कि बांध नहीं टूटे थे, बल्कि बांध की वजह से ही बाढ़ की विभीषिका उपजी थी. एक और गंभीर गलती यह हुई है कि रिपोर्ट में चेन्नई की जनसंख्या एक मिलियन बतायी गयी है, जबकि चेन्नई की जनसंख्या दस मिलियन से ज्यादा है.
इन आंकड़ों में जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत के जान-माल का जो नुकसान दर्ज हुआ है, वह सबसे ज्यादा इसलिए है, क्योंकि भारत में ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और किसानों के खेत बाढ़ और सूखे की भेंट चढ़ जाते हैं.
कई मामलों में इन सब परिस्थितियों के जिम्मेदार हम खुद भी हैं. विभीषिकाओं को आने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन अपनी तैयारी करके उससे होनेवाले नुकसान को अवश्य ही कम किया जा सकता है. रिपोर्ट में यह बात साफ कही गयी है कि भारत को इसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए. इन आंकड़ों की अनदेखी निश्चित रूप से ही समस्या से मुंह मोड़ने जैसा होगा. विडंबना तो यह है कि आपदाएं भारत में एक अरसे से होती चली आ रही हैं, हर साल बाढ़ और सूखे की विभीिषका सैकड़ों की जान ले लेती है और भयानक आर्थिक नुकसान करके जाती है.
लेकिन, हम अब तक इसकी अनदेखी ही करते जा रहे हैं. जल, जंगल, जमीन के लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं, तो इसलिए कि उनकी आजीविका ही वहीं से चलती है. जाहिर है, जो लोग प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं, जलवायु का असर उन पर सबसे ज्यादा पड़ेगा. क्योंकि अगर आपदा आयेगी, तो संसाधनों का प्राकृतिक नुकसान करेगी ही. सवाल है कि जब भारत सरकार इन सब बातों को जानती-समझती है, तो वह इससे बचने के उपाय क्यों नहीं करती?
मेरा मानना है कि हमें किसी दूसरे देश की संस्था की रिपोर्ट को देखने के बजाय खुद अपने देश में भी हर वर्ष की रिपोर्ट ऐसे ही तैयार होनी चाहिए कि हर साल जलवायु परिवर्तन का भारत के विभिन्न क्षेत्रों में क्या असर पड़ा. केंद्र सरकार से ज्यादा राज्य सरकारें इन आंकड़ों को ज्यादा अच्छे से जुटा सकती हैं. किस राज्य में कितनी आपदाएं आयीं, कितने लोग मारे गये, कितना आर्थिक नुकसान हुआ, इस जान-माल के नुकसान को कैसे रोका जा सकता था आदि की रिपोर्ट हर राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन संस्थाएं तैयार कर सकती हैं.
चूंकि राज्य सरकार को जमीनी हकीकत ज्यादा पता होती है, इसलिए राज्य सरकारों को जिम्मेदारी के साथ इस मामले में काम करना चाहिए. राज्य सरकारों द्वारा तैयार रिपोर्ट जब ग्लोबल रिपोर्ट के साथ आयेगी, तब हमें सही-सही और ज्यादा भयावह आंकड़ों की जानकारी मिल पायेगी. साथ ही, इस रिपोर्ट के आधार पर सही प्रबंधन और ठोस उपाय भी तैयार किये जा सकते हैं.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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