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क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति और आर्थिकी के उतार-चढ़ाव के माहौल में हो रही भारत-चीन शिखर वार्ता अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत आने से पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का चीन दौरा तथा चीन की ओर से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर बयानबाजी और भारत की स्वाभाविक प्रतिक्रिया को देखते हुए यह […]

क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति और आर्थिकी के उतार-चढ़ाव के माहौल में हो रही भारत-चीन शिखर वार्ता अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत आने से पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का चीन दौरा तथा चीन की ओर से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर बयानबाजी और भारत की स्वाभाविक प्रतिक्रिया को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस मसले पर चर्चा की संभावना है.
चीन पहले लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र बनाने के निर्णय का विरोध भी कर चुका है. हालांकि, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक संरचना में बदलाव उसका आंतरिक मसला है तथा चीन के साथ उसके सीमा-विवाद से इसका कोई लेना-देना नहीं है. चीन को यह भी याद दिलाया गया है कि किसी अन्य देश का भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है. यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान में अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए चीन उसकी तरफदारी कर रहा है.
पाकिस्तान ने 23 सालों के लिए ग्वादर बंदरगाह परिसर के संचालन का पूरा अधिकार एक चीनी कंपनी को दे दिया है, क्योंकि कर्ज में डूबी सरकार के पास ऐसे निवेश की गुंजाइश नहीं है. रही बात पाकिस्तानी सरकार की, तो उसकी विदेश व सुरक्षा नीतियों का निर्धारण सेना कर रही है. भारत और अफगानिस्तान समेत दक्षिण एशिया में आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका से चीन भी अनजान नहीं है.
ऐसे में चीन अगर भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों तथा क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को पाकिस्तान के हिसाब से देखने की कोशिश करता है, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा. बीते सालों में भारत और चीन के बीच व्यापरिक लेन-देन में तेजी आयी है तथा दोनों देश परस्पर भागीदारी बढ़ाने के लिए इच्छुक हैं.
पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की बैठक के बाद दोक्लाम तनाव को समाप्त किया जा सका था तथा अनेक क्षेत्रों में सहयोग के रास्ते खुले थे. भारत ने कभी भी चीन और पाकिस्तान की निकटता पर आपत्ति नहीं जतायी है, लेकिन भारतीय हितों की अनदेखी करते हुए यदि चीन किसी भी तरह का दबाव बनाने का प्रयास करता है, तो दोनों देशों के साथ क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था और स्थायित्व के लिए नकारात्मक संकेत होगा.
यह बैठक दोनों नेताओं के लिए संरक्षणवादी नीतियों और व्यापार-युद्ध से वैश्विक आर्थिकी को हो रहे नुकसान तथा जलवायु संकट पर विचार करने का अवसर है. आशा है कि शी द्विपक्षीय व्यापार घाटे को लेकर भारत की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करेंगे. दोनों नेता आपसी भरोसा बढ़ाने पर भी चर्चा कर सकते हैं.
जनसंख्या, क्षेत्रफल और अर्थव्यवस्था के लिहाज से दोनों देशों की निकटता न केवल इस क्षेत्र के, बल्कि दुनिया के विकास का नया अध्याय रच सकती है. इस बैठक पर पाकिस्तान की परछाईं डालकर शी शायद ही ऐसा अवसर गंवाना चाहेंगे. आशा का एक आधार यह भी है कि राष्ट्रपति जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी के आपसी समीकरण बहुत अच्छे हैं.

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