एक शहर की खूबसूरती में वहां की सुदृढ़ यातायात व्यवस्था चार चांद लगा देती है. किसी भी बड़े शहर में सबसे किफायती और सुरक्षित यातायात की सुविधा बस या मेट्रो की होती है.स्थानीय सरकारों की नीतियां भी इन्हें बढ़ावा देने में कारगर होती हैं. लेकिन इस मामले मे हमारे झारखंड के शहरों की स्थिति बिल्कुल उलट है. बस सेवा खस्ताहाल है और यह किसी तरह चल पा रही है. पिछले दिनों इससे संबंधित कई खबरें प्रकाशित हुईं हैं. कुछ सालों पहले बसों की संख्या अभी के मुकाबले बहुत अधिक थीं और सभी बहुत अच्छे से चल भी रही थीं, लेकिन आज गिनती की बसें भी मुश्किल से चल रही हैं.
इसके मुख्य रूप से दो कारण हैं. पहला है ऑटो की बढ़ती संख्या. बढ़ती आबादी के साथ ऑटो भी बढ़ते चले गये. इस पर लगाम लगाना तर्कसंगत नहीं होगा. दूसरा कारण है निजी गाड़ियों के प्रयोग की प्रवृत्ति.
आज हर जगह नाबालिग बच्चे सड़कों पर गाड़ियां चलाते मिल जायेंगे, जो स्कूल-कॉलेज-ट्यूशन जाने के लिए इनका प्रयोग करते हैं. लोग छोटी दूरी तय करने के लिए गाड़ी निकाल लेते हैं. इससे दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है. इसे रोकने की सरकार की ओर से पहल भी नहीं होती. यहां के बाजारों मे ही यह (अ)सुविधा है कि लोग भीतर तक गाड़ी पर जा सकते हैं.
पैदल चल रहे लोगों को परेशानी हो तो हो. बड़े शहरों में हर बाजार के पास पार्किग की व्यवस्था होती है और इसका शुल्क भी अधिक होता है. एक तरफ तो यह राजस्व बढ़ाता है, दूसरी ओर सार्वजनिक परिवहन इस्तेमाल करने को बढ़ावा देता है. ऐसे में दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों की बस सेवा बढ़िया है. यही वजह है कि वहां आबादी के अनुपात में सड़क दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत कम हैं.
जरा सोचें.
राजन सिंह, जमशेदपुर