आनेवाले 15 नवंबर को झारखंड अलग राज्य बने पूरे 14 साल हो जायेंगे. इस दौरान कई सरकारें आयीं और गयीं. राष्ट्रपति शासन भी लगा. लेकिन झारखंड को इस दौरान जो मुकाम हासिल करना था, उसकी प्रतीक्षा आज भी है.
दिलचस्प बात यह है कि राज्य में इसी साल फिर विधानसभा चुनाव होने हैं. सभी राजनीतिक दल चुनाव में उतरने के लिए तैयारी में जुट गये हैं. राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दल, सभी नफा-नुकसान का आकलन कर रहे हैं. हालांकि किसी के पास झारखंड को आगे ले जाने का कोई रोडमैप नजर नहीं आता. राज्य के विकास से ज्यादा सत्ता की चिंता दिखती है. अभी योजना आयोग की एक रिपोर्ट आयी है, जो झारखंड की असलियत को सामने रखती है.
इस रिपोर्ट की मानें तो देश के सौ सर्वाधिक पिछड़े जिलों में झारखंड के 15 जिले शामिल हैं. रिपोर्ट में, पिछड़ेपन के आधार पर सभी जिलों की रैंकिंग भी की गयी है. गोड्डा राज्य का सर्वाधिक पिछड़ा जिला है, तो धनबाद सबसे विकसित जिला. योजना आयोग ने वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर देश भर के जिलों की रैंकिंग की है.
इसके लिए महिला साक्षरता, बिजली की स्थिति, पेयजल-शौचालय के हालात के आकलन के साथ बैंकिंग सुविधा वाले घरों का भी जायजा लिया है. सिंचाई, कृषि के अलावा नगरीय सुविधाओं को भी रिपोर्ट का आधार बनाया गया है. आइए देखते हैं झारखंड के अति पिछड़े 15 जिलों की स्थिति और उन्हें दी गयी रैंकिंग- गोड्डा (14), पाकुड़ (23), गढ़वा (31), दुमका (34), साहिबगंज (35), लातेहार (36), पश्चिमी सिंहभूम (42), खूंटी (45), चतरा (52), सिमडेगा (54), गुमला (56), जामताड़ा (58), गिरिडीह (74), पलामू (79), लोहरदगा (85). ऐसा नहीं है कि झारखंड के बाकी नौ जिले बहुत अच्छी हालत में हैं. हां, इतना जरूर है कि वे 15 सबसे पिछड़े जिलों से बेहतर स्थिति में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पूरा संथाल परगना अति पिछड़ा है. जबकि दुमका स्थापना के समय से राज्य की उप राजधानी है. राज्य के राजनीतिक दलों को चाहिए कि इस रिपोर्ट के आधार पर विकास का नया रोडमैप लेकर जनता के बीच जायें. आनेवाले चुनाव में राज्य का पिछड़ापन और गरीबी मुद्दा बने. वरना समय बीतता जायेगा और झारखंड पिछड़ता ही जायेगा.