माननीय वित्त मंत्री के द्वारा पेश किये गये बजट ने देश में एक नयी बहस की शुरुआत कर दी है कि महत्वपूर्ण कौन है?
हथकरघा क्षेत्र में लगे लाखों मजदूर जो अपने परिवार का पेट भरने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं फिर भी ढंग का खाना नसीब नहीं होता है, मदरसे में पढ़ने वाले लाखों गरीब बच्चों जो बड़ी मुश्किल से प्रारंभिक शिक्षा हासिल करते हैं और उच्च शिक्षा से मरहूम रहते हैं, देश की करोड़ो बेटियां जो पढ़ने के बजाय घरेलू कामो में लगा दी जाती हैं, थर्मल पावर का विकास जो कारखानों की मां है, मॉनसून आधारित कृषि वाले देश के लिए प्रधान मंत्री सिंचाई योजना, देश की सुरक्षा के लिए शहीद हुए जवानों के स्मारक या फिर सरदार पटेल जी की प्रतिमा?
इस बजट में उपरोक्त मामलों में जो पैसे का प्रावधान किया गया है उससे तो यही लगता है कि पटेल जी की प्रतिमा ही महत्वपूर्ण है. हैंडलूम विकास के लिए 50 करोड़, बाकी अन्य के लिए 100-100 करोड़ और प्रतिमा के लए 200 करोड़. जरा सोचें आज यदि पटेल जिंदा होते तो क्या उन्हें यह स्वीकार होता? हरगिज नहीं.
जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी सादगी, ईमानदारी और कठोर परिश्रम से गुजारा, देश सेवा को अपना धर्म माना और गरीबों की उन्नति के लिए सदा संघर्ष किया. उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके देश में उनके नाम पर ऐसा भी होगा.
बात यहां सरदार पटेल की प्रतिमा पर होनेवाले खर्च की नहीं है, बल्कि यह है कि इससे भी जरूरी कई काम किये जाने अभी बाकी हैं. उनकी प्रतिमा पर करोड़ों रुपये खर्च करने से बेहतर होता कि उन पैसों को ऐसी योजनाओं में लगाया जाता जिससे देश के जरूरतमंदों का भला हो. अगर ऐसा होता तो सरदार पटेल की आत्मा को भी तसल्ली मिलती कि उनका देश सही हाथों में है.
गणोश सीटू, हजारीबाग