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निजी कर्ज का संकट

फंसे कर्जों का दबाव घटने से कुछ राहत की सांस ले रहे बैंकों को अब एक नयी मुश्किल की आशंका है. अर्थव्यवस्था में गिरावट, छंटनी और रोजगार की कमी से खुदरा कर्जों की वसूली में परेशानी हो सकती है. नौकरीशुदा और तय आमदनी के लोगों को उनके वेतन के हिसाब से निजी, वाहन या घर […]

फंसे कर्जों का दबाव घटने से कुछ राहत की सांस ले रहे बैंकों को अब एक नयी मुश्किल की आशंका है. अर्थव्यवस्था में गिरावट, छंटनी और रोजगार की कमी से खुदरा कर्जों की वसूली में परेशानी हो सकती है.
नौकरीशुदा और तय आमदनी के लोगों को उनके वेतन के हिसाब से निजी, वाहन या घर के लिए कर्ज देने में हाल तक बैंकों को दिक्कत नहीं होती थी. उन्हें नियत समय से चुकौती का भरोसा होता था, क्योंकि उन्हें लगता था कि कर्ज चुकाने में कॉरपोरेट इदारों की तुलना में लोग अधिक तत्पर होते हैं.
अनेक कंपनियों के दिवालिया या बंद होने तथा प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में मांग व उत्पादन घटने के रुझानों ने इस भरोसे को हिला दिया है. नौकरी छूटने या आमदनी घटने की स्थिति में कर्जदार भुगतान नहीं कर पाता है और बकाया वसूलने में बैंकों को भी बहुत परेशानी होती है. ऐसी आशंकाओं के कारण बैंकों और वित्तीय कंपनियों ने खुदरा कर्ज देने के नियम कड़े करना शुरू कर दिया है. उनकी आशंकाएं निराधार नहीं हैं.
खुदरा कर्ज बैंकिंग प्रणाली का अहम हिस्सा होता है. मौजूदा आंकड़े इंगित करते हैं कि यह पिछले एक दशक के सबसे गंभीर संकट से गुजर रहा है. एक तरफ वाहन, आवास, व निजी कर्जों तथा क्रेडिट कार्ड के कुल कर्ज राशि में पिछले सालों की तुलना में कम बढ़त हुई है, वहीं जोखिम भरे कर्ज की मात्रा में भी बढ़ोतरी हो रही है. चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों- अप्रैल और मई- में वाहन कर्ज और क्रेडिट कार्ड के बकाये की चुकौती का जोखिम सबसे ज्यादा बढ़ा है.
फिलहाल हालत के पटरी पर बने रहने का मुख्य कारण यह है कि नौकरी छूटने और छंटनी की चिंताओं के बावजूद अनेक क्षेत्रों में वेतन में बढ़त मुद्रास्फीति के स्तर से ऊपर रही है. परंतु, अगर अर्थव्यवस्था ने जल्दी ही रफ्तार नहीं पकड़ी और आमदनी में ठहराव बना रहा, तो स्थिति बदल जायेगी. कर्ज की किश्त चुकाने में देरी करने या नहीं चुका पाने का नकारात्मक असर कर्जदार के भविष्य पर भी पड़ेगा, क्योंकि उसे आगे नया कर्ज या तो नहीं मिलेगा या बहुत मुश्किल से मिलेगा.
ऐसा होना भी अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा. ऐसे माहौल में खुदरा कर्ज देने के लिए बेताब रहनेवाले बैंक और वित्तीय इदारे अब ग्राहकों को लौटाने लगे हैं. कुछ कंपनियों ने तो डिजिटल उत्पादों के लिए 25 साल से कम आयु के लोगों को कर्ज देना बंद कर दिया है. रिजर्व बैंक के मुताबिक, असुरक्षित कर्ज (निजी एवं क्रेडिट कार्ड) की मात्रा अभी पहले से बहुत ज्यादा है.
पिछले कुछ सालों से कॉरपोरेट कर्जे की मुश्किलों से परेशान बैंकों ने अपनी बढ़त बनाये रखने के लिए अंधाधुंध खुदरा कर्ज बांटा है. अगर इसमें वसूली और मांग में सुधार नहीं हुआ, तो बैंकिंग सेक्टर का संकट गहरा होता जायेगा. बहरहाल, वैश्विक आर्थिकी में कमजोरी और घरेलू कारकों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छे संतुलन के साथ अग्रसर है. सरकार की कोशिशों से भी बेहतरी की उम्मीदें बढ़ी हैं.

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