पिछले दिनों भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के आवास में एक करोड़ 15 लाख रुपये की चोरी हो गयी. चोरी की इस घटना के प्रकाश में आते ही बिहार पुलिस महकमा हरकत में आ गया और आठ घंटे के भीतर चोर को चोरी की सारी रकम के साथ पकड़ लिया. चोरी करने वाला यह शख्स कोई बाहर का व्यक्ति नहीं बल्कि उसी अपार्टमेंट का गार्ड था, जहां से चोरी हुई.
अमूमन बिहार पुलिस की ऐसी मुस्तैदी कभी-कभी ही दिखाई देती है. वह अपनी इस सफलता पर अपनी पीठ थपथपा रही है. लेकिन असल मामला यह सामने आया कि गिरिराज सिंह ने चोरी की प्राथमिकी में 50 हजार रुपये चोरी होने की बात दर्ज करायी थी, लेकिन जब पुलिस ने चोर को पकड़ा, तो उसके पास से चोरी के एक करोड़ 15 लाख रुपये बरामद हुए. खुद उस चोर ने भी इतने रकम की चोरी करने की बात कबूली है. अब इतने पैसे आये कहां से, इस पर गिरिराज सिंह को कोई जवाब नहीं सूझ रहा है. दूसरी बात यह है कि बिहार पुलिस जिस तत्परता के साथ पूरे मामले का उद्भेदन किया, क्या वह एक आम आदमी की उम्मीदों पर उतनी ही खरी उतरती है?
बिलकुल नहीं. यहां बात बिहार पुलिस की ही नहीं है, पूरे देश में कमोबेश यही स्थिति है. हर दिन चोरी, छिनतई, हत्या, दुष्कर्म, अपहरण की खबरें मीडिया में चलती रहती हैं और इन घटनाओं को अंजाम देनेवाले लोग खुलेआम घूमते रहते हैं, पुलिस उन्हें छू तक नहीं पाती है. आज देश में पुलिस की असल छवि बॉलीवुड सिनेमा बयां करता है. ‘सद्रक्षणाय, खलविग्रहणाय’ के सिद्धांत पर चलने का दावा करनेवाली हमारे देश की पुलिस असल में काम ठीक इसका उलटा करती है. कमजोरों को सताना और ताकतवर अपराधियों की जी-हुजूरी करना आज पुलिस की पहचान बन चुका है.
कुमकुम लाल, डोरंडा, रांची