22.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ट्रेड वार और दुनिया

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के थमने के आसार नहीं है और यह स्थिति शीत युद्ध में बदलती जा रही है. कुछ महीने पहले तक आपसी सुलह की उम्मीद बन रही थी. साल 2018 में अमेरिका भेजे गये चीनी सामान का मूल्य 539 अरब डॉलर था. इसमें से करीब आधे पर ट्रंप प्रशासन ने शुल्क लगाया है. […]

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के थमने के आसार नहीं है और यह स्थिति शीत युद्ध में बदलती जा रही है. कुछ महीने पहले तक आपसी सुलह की उम्मीद बन रही थी. साल 2018 में अमेरिका भेजे गये चीनी सामान का मूल्य 539 अरब डॉलर था. इसमें से करीब आधे पर ट्रंप प्रशासन ने शुल्क लगाया है. उसने संकेत दिया है कि बाकी बची चीजों के साथ भी ऐसा किया जा सकता है.

इसके जवाब में चीन ने 110 अरब डॉलर के अमेरिकी सामानों को शुल्क के दायरे में डाल दिया है. अमेरिका ने चीन को पिछले साल 120 बिलियन डॉलर का कुल निर्यात किया था. अमेरिका का मानना है कि इस कार्रवाई से देश में बनी चीजें चीन से आयातित सामानों से सस्ती हो सकती हैं और इससे घरेलू कारोबार को फायदा होगा.
दूसरा तर्क है कि संभावित व्यापार समझौते में इससे चीन पर दबाव बनाने में मदद मिलेगी. लेकिन, राष्ट्रपति ट्रंप के इस पैंतरे से भले ही चीन को नुकसान होता हुआ दिख रहा है, अमेरिकी व्यापार जगत भी परेशानी में है. विकसित देशों के संगठन, विश्व व्यापार संगठन और यूरोपीय संघ समेत अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने व्यापार युद्ध को नुकसानदेह माना है.
वैश्वीकरण और बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में अमेरिका और चीन जैसी शीर्षस्थ अर्थव्यवस्थाओं की आपसी तनातनी के असर से वैश्विक अर्थव्यवस्था भी नहीं बच सकती है. विकसित देशों की संस्था का कहना है कि इस तनाव से दुनिया की आर्थिकी की वृद्धि 2016 के स्तर पर पहुंच सकती है, लेकिन अगर अमेरिका और चीन में शुल्कों पर सहमति बन जाती है, तो 2020 में इसका फायदा मिल सकता है.
छत्तीस देशों की इस संस्था ने ट्रेड वार को कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है. अनुमान है कि मौजूदा हालत में दुनिया का कुल घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी की दर पिछले साल के 3.5 फीसदी से घटकर इस साल 3.2 फीसदी हो जायेगी. वैश्विक व्यापार की वृद्धि दर के 3.9 फीसदी से कम होकर 2.1 फीसदी रहने का अंदेशा है, जो कि एक दशक में सबसे निचले स्तर पर है.
साल 2017 में यह दर 5.5 फीसदी रही थी. अनेक देशों के लिए वृद्धि दर में मामूली कमी को बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल है. पहले से ही यह दर इटली में शून्य, जर्मनी में 0.7 फीसदी (पिछले साल से आधा) और जापान में 0.7 फीसदी रहने का अनुमान है.
जी-20 के कुछ ही देश ऐसे हैं, जो पिछले साल से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. इनमें ब्राजील, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना (पर यहां मंदी बनी रहेगी) और भारत हैं.
यह संतोषजनक है कि भारत की वृद्धि दर 7.2 फीसदी रहेगी, जो कि इस देशों में सर्वाधिक है. लेकिन अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल तथा राजनीति व कूटनीति में तनाव हमारे विकास में भी बाधक बन सकते हैं. उदाहरण के तौर पर तेल की कीमतों में अस्थिरता और निर्यात घटने जैसे कारकों को लिया जा सकता है. ट्रेड वार के खात्मे के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय पहल की जरूरत है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें