मैं एक भूमिहीन, स्नातक उत्तीर्ण, अनुसूचित जाति का बेरोजगार, 46 वर्षीय पुरुष हूं. मैं अलग झारखंड आंदोलन से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूं, लेकिन कभी जेल नहीं गया. नौकरी में बाधा न आये, यह सोच कर मौके से हट जाता था. झारखंड अलग होने से नौकरी मिलेगी, ऐसा मैं सोचता था. लेकिन सरकारी लापरवाही और प्रशासनिक दबंगई ने सपनों पर पानी फेर दिया.
वन विभाग में नौकरी के लिए फॉर्म जमा किया, पता नहीं क्या हुआ. हाई स्कूल के शिक्षक के लिए अनट्रेन्ड का फॉर्म जमा किया, नियमावली बदल गयी. द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठा, धांधली सबके सामने है. झारखंड पुलिस का फॉर्म भरा, वैकेंसी रद्द हो गयी. समाहरणालय, बिरसा कृषि विवि में भी तृतीय-चतुर्थ वर्ग के लिए फॉर्म भरा, लेकिन सारे प्रयास धांधली की भेंट चढ़ गये. आज मैं मनरेगा का एक मजदूर हूं.
अशोक कुमार दास, मधुपुर, देवघर