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राजभाषा के साथ कैसी राजनीति?

हाल में हिंदी को बढ़ावा देने के बारे में एक समाचार क्या छपा, द्रमुक नेता करुणानिधि आगबबूला हो उठे. तमिलनाडु में हिंदी-विरोध राजनीतिक मुद्दा रहा है. हिंदी की हिमायत करनेवालों को भी सावधानी से काम लेना चाहिए. हिंदी विरोधी तत्व ऐसे प्रयत्नों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं. इससे हिंदी का ही […]

हाल में हिंदी को बढ़ावा देने के बारे में एक समाचार क्या छपा, द्रमुक नेता करुणानिधि आगबबूला हो उठे. तमिलनाडु में हिंदी-विरोध राजनीतिक मुद्दा रहा है. हिंदी की हिमायत करनेवालों को भी सावधानी से काम लेना चाहिए.

हिंदी विरोधी तत्व ऐसे प्रयत्नों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं. इससे हिंदी का ही नुकसान होता है. संभव है कि राजनेता इस प्रकार की अशांति सोच-समझ कर पैदा करते हों. हमारे संविधान ने हिंदी को राजभाषा का दरजा दिया, यानी संघ का सारा कार्य हिंदी में ही किया जायेगा. बाकी भाषाओं को समकक्ष का दरजा दिया गया है.

लेकिन फिर भी कई राज्यों ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया है, जिसके कारण कई जगह अंगरेजी भाषा का ही प्रयोग हो रहा है. अपने ही देश में आज हिंदी भाषा की भूमिका महज रस्म अदायगी भर की रह गयी है.

साकेत कुमार, जमशेदपुर

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