झारखंड के विश्वविद्यालयों में व्याख्याताओं की घोर कमी है, जिससे विभिन्न महाविद्यालयों में पठन-पाठन लगातार प्रभावित हो रहा है, फिर भी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जाता. वह जेपीएससी, यूजीसी और खुद के बनाये नियमों में ही उलझी हुई है. यदि नयी नियुक्ति के लिए एक्ट में बदलाव लाना ही जरूरी है, तो ऐसा ही कर राज्य की उच्च शिक्षा को राहत पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए.
यहां तक कि सीबीआइ से 2008 की जांच जल्द निबटाने के लिए कहना चाहिए. जब सीबीआइ को जेट की कापियों से छेड़छाड़ के सबूत मिल चुके हैं तो वह और किस सबूत की खोज में है? क्या बीतते समय के साथ वह इस मामले को दबा देना चाहती है? राज्य सरकार अगर गंभीर है तो उसे तत्काल 2008 की नियुक्तियां रद्द कर पीएचडी और नेट पास अभ्यर्थियों की साक्षात्कार के जरिये नियुक्ति करनी चाहिए.
मुकेश सिन्हा, गिरिडीह