।। रजनीश आनंद।।
(प्रभात खबर.कॉम)
जब से अच्छे दिन आये हैं, 125 करोड़ लोगों में शुमार मैं भी नयी उम्मीदों के साथ जी रही हूं. सुबह-सुबह अखबार में खबर पढ़ी कि सरकार 2020 तक सबको अपना घर मुहैया करायेगी. बस क्या था, मुझे लगने लगा कि अब तो अपने घर का सपना सच हो जायेगा. मैं सपने संजोने में जुटी थी, तभी कॉलबेल बजी. मैंने दरवाजा खोला. सामने मेरे मित्र शर्माजी खड़े थे. पिछली मुलाकात में उनका चेहरा कमल की तरह खिला हुआ था, लेकिन इस बार वे मुरझाये फूल लग रहे थे. मैंने उन्हें ताजादम करने के लिए चाय की प्याल पकड़ायी और पूछा- ‘‘क्या हुआ, बुङो-बुझे से लग रहे हैं?’’
इस सहानुभूति से शर्मा जी खुल गये, ‘‘क्या बताऊं, मुझे लगा था कि चुनाव में मुंह की खाने के बाद कांग्रेसी थोड़ा सुधरेंगे. लेकिन नहीं, ये तो टांग खींचने में लगे हैं.’’ अपने घर के सपनों में खोई मैं समझ नहीं पायी कि आखिर शर्माजी को कौन सा दुख खाये जा रहा है. फिर भी, उन्हें सांत्वना देने के लिहाज से मैंने विषय को समङो बगैर कहा, ‘‘जाने दें, इन बातों पर इतना टेंशन ना लें.’’ मेरी सांत्वना पर शर्माजी बिफर गये, ‘‘कमाल करती हैं! मेरी प्रिय नेता जिसने राहुल बाबा को अमेठी में नाकों चने चबवा दिये, उसकी क्षमता पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं. मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता. मैं इसके खिलाफ आंदोलन करूंगा. जब देश का कानून 12वीं पास को मंत्री बनने से नहीं रोकता, तो ये लोग कौन होते हैं?’’ अब मैं समझी कि आखिर शर्माजी को कौन सी बात चुभी है.
मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘अरे भाई, आप यह भी तो देखें न कि उन्हें शिक्षा विभाग मिला है. अब जबकि वह खुद ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, तो सवाल उठेंगे ही न.’’ इस पर शर्माजी और बिगड़ गये, ‘‘मोहतरमा, आपने न्यूटन्स लॉ पढ़ा है.’’ मैंने कहा, ‘‘हां, पढ़ा है.’’ शर्माजी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘जरा बतायेंगी कि वे कितना पढ़े-लिखे थे.’’ मैंने कहा, ‘‘अरे यह कोई बात हुई! हर कोई न्यूटन नहीं होता. अगर वह इतनी ही क्षमतावान हैं और उनमें कुछ कर दिखाने का जज्बा है, तो पहले कुछ दिन उन्हें कैबिनेट मंत्री के अधीन रखना चाहिए था, फिर ठोंक- बजा कर जिम्मेदारी सौंपते.
आप क्या यह कहना चाहते हैं कि शिक्षा का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं है?’’ शर्माजी ने मेरे तर्क को कमजोर किया, ‘‘नहीं, मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कहना चाहता, लेकिन आप जरा मुङो यह बतायें कि अगर कोई व्यक्ति क्षमतावान हो और कुछ करना चाहता हो, साथ ही कानून और प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार भी उसे मदद दे रहा हो तो क्या उसकी टांग खींचनी चाहिए?’’ मैंने देखा कि शर्माजी अपनी बात को आज नीचे नहीं होने देंगे, उस पर कानून और विशेषाधिकार भी उनके साथ है, सो मैंने हथियार डाल दिये. लेकिन मेरे मन के अंदर यह सवाल जरूर था कि आखिर हमारे देश में मंत्रियों को पदभार सौंपने के पहले उसकी किस योग्यता को आधार बनाया जाता है..