जरेडा (झारखंड रेनुएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी) द्वारा झारखंड के 55 स्थलों पर स्मॉल हाइडल प्रोजेक्ट लगाने की योजना है. इन स्मॉल हाइडल प्रोजेक्ट की क्षमता 0.028 मेगावाट से लेकर पांच मेगावाट तक की है. जल की उपलब्धता के आधार पर परियोजना लगायी जायेगी.
सरकार का यह कदम ऊर्जा की उपलब्धता की दिशा में निश्चित ही सराहनीय है. चूंकि हाइडल पावर प्लांट से उत्पादित बिजली की लागत काफी कम होती है. इसीलिए सस्ती बिजली होने की वजह से हाइडल को बेहतर माना जाता है. झारखंड के लिए इस तरह के प्रोजेक्ट को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए. चूंकि राज्य बिजली संकट से जूझ रहा है इसलिए सरकार की यह महती जिम्मेवारी है कि वह बिजली संकट की समस्या के लिए हर बेहतर पहल करे. दरअसल, सरकारी योजनाओं का सच यह है कि कागज पर एक से बढ़ कर एक योजनाएं बनती हैं, मंजूर होती हैं, काम भी शुरू हो जाता है पर धरातल पर परिणाम या तो शून्य या बहुत निराशाजनक नजर आता है.
कई योजनाएं तो आज तक शुरू भी नहीं हो पायीं और कई आधी-अधूरी पड़ी हुई हैं. यह बताने की जरूरत नहीं कि किसी भी राज्य के ढांचागत विकास में जिन बुनियादी संसाधनों की आवश्यकता होती है उनमें बिजली सर्वोपरि है. झारखंड में आज भी सामान्य नागरिक से लेकर उद्योगपति तक बिजली संकट से जूझ रहा है. झारखंड को यह सोचने की जरूरत है कि आखिर वह आज भी क्यों पिछड़े राज्यों की श्रेणी में गिना जा रहा है. क्या इससे पार पाना संभव नहीं है? तमाम खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य की उपेक्षा कोई कर पाये ऐसा संभव नहीं है.
राज्य विकास की डगर पर निर्बाध रूप से आगे बढ़ सके और अपने साथ गठित राज्यों छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के समकक्ष खड़ा हो सके इसके लिए जरूरी है सरकार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर जोर दे. इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति के साथ-साथ बेहतर कार्यनीति का होना भी जरूरी है. बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि उपेक्षित पड़ी कई पुरानी परियोजनाओं का हश्र देखते हुए झारखंड सरकार इस नये हाइडल पावर प्रोजेक्ट को गंभीरता से लेगी और इस दिशा में हर वह महत्वपूर्ण कदम उठायेगी जिससे यह प्रोजेक्ट समय से पूरा हो सके और राज्य इससे लाभान्वित हो सके.