लोकतंत्र में विरोध का अधिकार हर किसी को है, लेकिन इस विरोध का मतलब यह नहीं कि आप अपने विरोधियों का मजाक उड़ायें, उन्हें धमकियां दें या फिर उन्हें पाकिस्तान भेजने के लिए टिकट भेजें.
मैं यह भी मान सकता हूं कि सम्मानित साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति ने मोदी की जिस तरह आलोचना की, उस पर एक बहस होनी चाहिए. लेकिन यह क्या कि एक साहित्यकार को अपनी सियासी सोच के कारण असुरक्षा के माहौल में जीना पड़े?
यह स्थिति तो हमारे लोकतंत्र के लिए कतई शोभनीय नहीं है. अगर उक्त पार्टी को सही तौर पर गुस्सा जाहिर करना ही है, तो आपस में बैठ कर बात-विचार करे. अगर देखा जाये तो देश में ऐसे लाखों-करोड़ों लोग हैं जो नहीं चाहते थे कि मोदी प्रधानमंत्री की कुरसी पर बैठें, तो क्या अब सरकार उन लाखों को दूसरे देश भेजने के लिए टिकट देगी?
रमेश कुमार, कांके