एक वक्त था जब साधु-संत और ऋ षि-मुनिजन ज्ञान, त्याग-तपस्या और भक्ति भावना की मूर्ति होते थे और रास्ते में उन्हें आते देख राजा भी अपनी सवारी से उतर कर उनके चरण स्पर्श से आशीर्वाद प्राप्त करते थे. वह सतयुग था. लेकिन आज दुर्भाग्य से इस कलियुग में मनुष्य का जो पतन हो चुका है, वह किसी से छिपा नहीं है.
आज के साधु-संत ठग के रूप में सक्रिय हैं. हर दिन खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि फलां जगह साधुओं ने परिवार को लूटा. यहां तक कि घृणित अपराध करने में भी साधु पीछे नहीं हैं, जिसके कारण आज उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ रही है. नन्ही बच्ची से लेकर वृद्ध महिला भी उनके आश्रम में सुरक्षित नहीं हैं. ऐसे बेईमान साधु-संतों की भरमार हर जगह है. ये लोग मेहनत और ईमानदारी की रोटी न खा कर जुल्मों और जुर्मो पर ही फल-फूल रहे हैं. आज भिखारियों और ऐसे साधु-संतों में कोई अंतर ही नहीं रह गया है.
रीना सिन्हा, ई-मेल से