किसी परीक्षा में असफल हो जाने से छात्रों द्वारा आत्महत्या जैसा कदम उठाना बेहद निराशाजनक है. आंकड़े बताते हैं कि इनमें से कई छात्र संपन्न घरों के होते हैं, जिन पर घर की कोई जिम्मेदारी नहीं होती. ऐसा अल्हड़ जीवन पाने के बावजूद वे कभी प्रेम-प्रसंग तो कभी किसी परीक्षा मे असफल हो जाने पर ऐसा खतरनाक कदम उठा लेते हैं.
ऐसे कई घर हैं, जहां बच्चों को कभी ना सुनने की आदत नहीं होती. उनकी इच्छा- चाहे महंगे गैजेट की हो, नयी गाड़ियों की या ज्यादा जेबखर्च की, उनके बोलने के पहले ही पूरी हो जाती है. आज आप स्कूली बच्चों को स्मार्टफोन प्रयोग करते, शराब पीते या बिना हेल्मेट पहने गाड़ी चलाते सड़कों पर देख सकते हैं.
स्कूल प्रबंधन की मनाही के बावजूद बच्चे गाड़ी से स्कूल जाते हैं. आज के बच्चों में पढ़ाई तो पढ़ाई, उनमें कपड़ों के ब्रांड, मोबाइल और यहां तक कि दूसरों के लुक को लेकर भी प्रतिद्वंद्विता है. प्रवेश परीक्षाओं मे असफल होने के बावजूद ये पैसों के दम पर अच्छे कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं. वहां भी अपनी पढ़ाई के प्रति ये कितने गंभीर हैं, यह देखना हो तो वहां केपब, डिस्को में चले जायें. अब खुद विचार करें कि क्या इस तरह हम बच्चों को मजबूत बना रहे हैं! इनमें ही से कुछ अंतर्मुखी बच्चे असफल होने पर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. वे एक बार यह भी नहीं सोचते कि उनके माता-पिता का क्या होगा?
अंत में मेरा एक निवेदन है. जैसे आप सिनेमा और मॉल जाते हैं, वैसे ही कभी-कभी किसी झुग्गी बस्ती मे घूम आयें और वहां का जीवन देखें. यहां बच्चे बिजली, पानी, पैसे, कपड़े, किताबें सभी के लिए संघर्ष करते नजर आयेंगे, लेकिन जीवन के प्रति उनका उत्साह कभी कम नहीं होता. वे निरंतर उसे पाने के लिए प्रयासरत रहते हैं.
राजन सिंह, ई-मेल से