बिहार के लिए आज का दिन (12 मई) परीक्षा की घड़ी है. 12 मई को राज्य की छह सीटों पर तकरीबन एक करोड़ से अधिक मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे. इसी के साथ लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण पूरा हो जायेगा. अंतिम चरण में जिन इलाकों में चुनाव होना है, उनमें से कुछ हिस्से नक्सलवाद से प्रभावित है.
इस कारण यहां चुनौतियां कुछ अधिक हैं. हाल के महीनों में नेपाल से सटे इलाकों में माओवादी घटनाएं बढ़ी हैं. साथ ही कई आपराधिक संगठन भी नक्सलवाद के नाम पर खड़े हो गये हैं. इन संगठनों के पास कोई वैचारिक आधार नहीं है. शोषणमुक्त समाज के नारे की आड़ में ये आपराधिक संगठन उत्पात मचाते रहे हैं. गोपालगंज में भी नक्सली घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. इन संगठनों का काम दहशत कायम करके लेवी वसूलना है. चुनाव के दौरान ये संगठन अपना दबदबा कायम करने की खातिर हिंसक वारदातों को अंजाम दे सकते हैं.
प्रशासनिक तौर पर इस आशंका के मद्देनजर पूरी तैयारी की गयी है. लेकिन सबसे बड़ा दारोमदार मतदाताओं पर है. पूरी सुरक्षा की तैयारी के बाद भी अगर मतदाता अपने कर्तव्य के प्रति उदासीन रहेगा, तो असामाजिक व आपराधिक तत्वों का दबदबा बढ़ेगा.
यही मौका है, जब वोट की ताकत का इस्तेमाल कर आम आदमी भी यह संदेश देता है कि उसे अमन-चैन चाहिए, उसे रोटी चाहिए, न कि बंदूक की नोक पर सहम-सहम कर गुजरने वाली जिंदगी. एक जमाना था, जब यह माना जाता था कि बिहार में बिना हिंसा के चुनाव की प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो सकती. चुनाव के बाद भी गांवों का माहौल खराब हो जाता था. चुनाव के समय में पैदा हुई कड़वाहट व दुश्मनी महीनों तक चलती रहती थी. एक चुनाव का बदला अगले चुनाव में चुकाने की तैयारियां चलती थीं. यह सब अब बीते दिनों की बातें हो गयी हैं. बिहार इन हालात से आगे बढ़ चुका है. अब तक हुए पांच चरणों में चुनाव में, हर चरण के बाद वोट का प्रतिशत बढ़ा है. हिंसा की बहुत ही मामूली घटनाएं हुई हैं और मतदाताओं में एक तरह की परिपक्वता भी दिखी है. आखिरी चरण के मतदान में यही शांति व समझ बनी रहेगी. इसी उम्मीद के साथ बिहार मतदान का नया रिकॉर्ड बनायेगा. आमीन.