लोकसभा चुनाव संपन्न होने की ओर बढ़ रहा है. चुनाव में बढ़ता मतदान लोकतंत्र की मजबूती की ओर इशारा कर रहा है. लोगों में काफी उत्साह है और नये जुड़े मतदाताओं में तो कुछ ज्यादा ही स्फूर्ति दिख रही है. साथ ही, कई स्थानों पर महिलाओं का भी खासा दबदबा दिखा. यह एक शुभ संकेत है कि लोग अब अपने अधिकार को लेकर सतर्क हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास भी जगा है.
चुनाव आयोग द्वारा मतदाता जागरण कार्यक्रम के सकारात्मक परिणाम भी निकले हैं. ऐसा कई बार देखा गया है कि सही मतदान न होने के कारण दागी प्रत्याशी विजयी होते रहे हैं और वह इस कारण कि उनके समर्थकों के संपूर्ण मत उन्हें मिल जाते हैं और विरोधी मत नहीं पड़ते. इस बार मत-प्रतिशत पूरे देश में बढ़ा है और पिछड़े-वर्ग के साथ-साथ पसमांदा मुसलमानों की भूमिका भी अहम होगी. जनता परिवर्तन चाहती है और यह लोकतंत्र के लिए अच्छा भी है.
लगातार एक ही सरकार के रहने से संबंधित पार्टियों में एक लचरपन दिखता है और जनता के प्रति उनकी जवाबदेही भी कम हो जाती है. राजनैतिक दलों में अन्ना आंदोलन के बाद शुद्धीकरण की कवायद, चुनाव आयोग के कठोर मापदंड, स्वस्थ लोकतंत्र की लोगों में कामना, जनप्रतिनिधियों पर अविश्वास और पिछले दस वर्षो की नाकाम सरकार के सामूहिक कारणों से लोग कुछ नया चाहते हैं. बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार और खोखले वायदों से भी जनता त्रस्त हो चुकी है. आम जनता की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि जागरूकता बढ़ी है पर ऐसी जागरूकता सरकार बनने के बाद भी जरूरी है, ताकि सरकार जनता की समस्याओं का समाधान के लिए कृतसंकल्प बनी रहे.
मनोज आजिज