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नहीं आयी ट्रंप पकौड़ा रोजगार योजना
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार बजट के बाद वित्त मंत्री का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू इस प्रकार है. यह इंटरव्यू इस कदर एक्सक्लूसिव है कि खुद वित्त मंत्री तक को ना पता कि उनका इंटरव्यू हो लिया है. सवाल- इस बजट में नमामि गंगे परियोजना के लिए फिर करोड़ों दिये गये. इस पर क्या कहना है आपका? वित्त […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
बजट के बाद वित्त मंत्री का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू इस प्रकार है. यह इंटरव्यू इस कदर एक्सक्लूसिव है कि खुद वित्त मंत्री तक को ना पता कि उनका इंटरव्यू हो लिया है.
सवाल- इस बजट में नमामि गंगे परियोजना के लिए फिर करोड़ों दिये गये. इस पर क्या कहना है आपका?
वित्त मंत्री उर्फ विमं- रकम गंगा में डुबाने की अद्भुत परियोजना है यह. इसमें अब परिणाम न के बराबर आये हैं. लाभ-हानि से उठकर देखने का दार्शनिक तजुरबा इस योजना को देखकर हासिल होता है. रकम डूबती जाती है. हम डुबोेये जाते हैं.
सवाल- बजट आ गया है, रोजगार बढ़ाने के लिए ठोस उपाय इसमें दिखायी नहीं पड़ते.
विमं- बजट पर बोलते हुए आपको यशवंत सिन्हा बहुत से चैनलों पर दिखे. अभी शत्रुघ्न सिन्हा भी बजट पर बरसेंगे. ये रोजगार नहीं है क्या. बजट ने बहुतों को रोजगार दिया है, वो एक्सपर्ट जो हनीप्रीत कांड के एक्सपर्ट थे, अब बजट के एक्सपर्ट हो गये हैं. रोजगार हर तरफ बरस रहा है.
सवाल- खेती के लिए कुछ ठोस नहीं है बजट में. खेती में साल में दो परसेंट का विकास नहीं है और सेंसेक्स एक महीने में तीस परसेंट से ज्यादा कूद गया. क्या यह गैरबराबरी नहीं है?
विमं- देखिये, बजट की घोषणाओं के दौरान सेंसेक्स में 400 से ज्यादा बिंदुओं की गिरावट आयी थी. गैरबराबरी खत्म हो जायेगी, अगर सेंसेक्स 10,000 बिंदु गिर जाये, तो वहां की विकास दर कृषि विकास दर के बराबर हो जायेगी.
सवाल- बजट में खेती की चर्चा तो है, पर उसके लिए जमीनी उपाय तो कहीं दिख नहीं रहे हैं?
विमं- आप चिंता ना करें, बहुत जल्दी पेट्रोल 150 रुपये लीटर होनेवाला है.
सवाल- पर मैं पूछ रहा हूं कि बजट में कृषि के लिए जमीनी उपाय नहीं हैं और आप कह रहे हैं कि जल्दी पेट्रोल 150 रुपये लीटर होनेवाला है. क्या कनेक्शन है इन दोनों बातों में?
विमं- जैसे ही पेट्रोल 150 रुपये लीटर होगा, सब लोग सिर्फ पेट्रोल पर हल्ला मचायेंगे. यही एकमात्र समस्या होगी, खेती वगैरह को सब भूल जायेंगे. इस तरह से खेती की समस्या अपने आप खत्म हो लेगी.
सवाल- बजट से कुछ रचनात्मक उपायों की उम्मीद थी. आउट आॅफ दि बाॅक्स थिंकिंग की उम्मीद थी, पर ऐसे कुछ नहीं दिखा बजट में. आपकी राय?
विमं- जी मैं ट्रंप पकौड़ा रोजगार योजना लेकर आनेवाला था. ट्रंप की तरह चटपटे पकौड़े पर दुनिया की हेल्थ के अच्छे नहीं पकौड़े- इस पर सब पर कुछ करनेवाला था. हेल्थ-वेल्थ की चिंता बेकार है, रोजगार सबसे बड़ा मसला है. सबसे पहले पकौड़ा मंत्रालय बनना था, उसमें केंद्रीय पकौड़ा मंत्री, पकौड़ा राज्य मंत्री आदि होते. पकौड़ा डिवीजन होता. पकौड़ा विकास अधिकारी होते. पकौड़ा संपर्क अधिकारी होते. पकौड़ा मार्केटिंग अफसर होते. पकौड़ा सहायक होते.
पकौड़ा सचिव, पकौड़ा उप सचिव आदि-आदि होते. यानी इतना रोजगार तो सरकार में ही बढ़ जाता पकौड़े पर. हम फिर पकौड़ा लाइसेंस अथाॅरिटी बनाते कि बिना लाइसेंस के पकौड़े ना बनाये जा सकते. फिर किसी ज्ञानी ने बताया कि पकौड़ों के लाइसेंस से आफत यह आ जायेगी कि कुछ कंपनियां ही पकौड़ा कारोबार पर कब्जा कर लेंगी. जैसा टेलीकाॅम में है. कोई बड़ी कंपनी पांच सौ रुपये में पकौड़ों का लाइफ प्लान पेश करके पांच सौ में पूरी जिंदगी पकौड़े खिलाने का प्रस्ताव कर देती. ऐसे में छोटे पकौड़ेवाले आफत में आते, तो इसे पकौड़े को मुक्त बाजार में छोड़ दिया गया. ट्रंप पकौड़ा रोजगार योजना इसलिए ही नहीं आयी.
सवाल- रेल बजट को तो फ्लाप माना जा रहा है. कुछ भी नया नहीं है. वही सब पुरानी चलताऊ घोषणाएं.विमं- देखिये रेल विभाग को लेकर कुछ रचनात्मक सुझाव आये थे, पर हम उन्हें लागू नहीं कर पाये थे. एक सुझाव यह था कि समझौता एक्सप्रेस भारत से पाकिस्तान के बीच नहीं चलनी चाहिए.
यह भाजपा हेडक्वाॅर्टर से शिवसेना हेडक्वार्टर के बीच चलनी चाहिए. क्योंकि शिवसेना और भाजपा में रोज मारधाड़ होती रहती है. लेकिन, फिर यह देखा गया कि भाजपा हेडक्वाॅर्टर और शिवसेना हेडक्वाॅर्टर के बीच रेल का रास्ता बनाने में बहुत निवेश लगेगा, तो इसीलिए इस योजना को छोड़ दिया गया.
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