मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड में कोयला चोरी रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिये हैं. यह पहला मौका नहीं है, जब किसी मुख्यमंत्री ने ऐसा आदेश दिया है. लगभग हर मुख्यमंत्री के कार्यकाल में ऐसे आदेश पारित होते रहे हैं. पर क्या कोयले की चोरी रुकी? एक अनुमान के मुताबिक, झारखंड से हर साल लगभग 14 अरब रुपये के कोयले की चोरी हो जाती है. यानी रोज 5.84 करोड़ की चोरी.
यह कोयला राज्य के धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग और रामगढ़ जैसे जिलों से निकल कर यूपी, बिहार और दूसरे राज्यों की मंडियों तक पहुंचाया जाता है. यह बात सब जानते हैं, पर कार्रवाई क्या होती है? कभी-कभी एक-दो ट्रक पकड़ लिये जाते हैं. साइकिल से कोयला बेच कर अपनी जीविका चलानेवालों को पकड़ कर उनकी साइकिलें तोड़ दी जाती हैं.
मामला दर्ज कर एक-दो लोग जेल भेज दिये जाते हैं. यह सब खानापूरी करने के बाद कोयला कंपनियां चुप. पुलिस चुप. प्रशासन चुप. नेता चुप. सब कुछ इनकी नाक के नीचे होता है, पर चुप रहते हैं क्योंकि इस चोरी का बड़ा हिस्सा इनकी जेब में भी जाता है. दरअसल, कोयला चोरी रोकने की कभी सार्थक पहल हुई ही नहीं. सरकार का आदेश, एक-दो दिन की कड़ाई और फिर सब कुछ पुराने र्ढे पर चलने लगता है. सरकार चाहे, तो कोयला चोरी नहीं रुक सकती है क्या? सिर्फ एक एसपी की इच्छाशक्ति ने राज्य के एक जिले में कोयले के अवैध कारोबार को रोक दिया था.
हां, उस अफसर को इसकी कीमत चुकानी पड़ी. सारे कोल माफिया एक हो गये और उसे वहां से जाना पड़ा. सरकार ने ही उस अफसर का तबादला कर दिया. क्या सरकार ईमानदार और सक्षम अफसरों की कोयलावाले जिलों में पोस्टिंग नहीं कर सकती? कोयला माफियाओं की सूची सार्वजनिक है, क्यों नहीं उस पर कार्रवाई होती? क्यों कोयला माफिया और भ्रष्ट नेता-अफसरों के सामने सरकार घुटने टेक देती है? सरकार को अगर कोयला चोरी रोकनी है, तो सबसे पहले इच्छाशक्ति चाहिए. तबादलों में पैरवी नहीं, योग्यता का ध्यान रखना होगा. जब तक थाने बिकते रहेंगे, जिले बिकते रहेंगे, कोयला चोरी पर रोक संभव नहीं है. सरकार के नये आदेश का हाल भी कहीं पुराने आदेश की तरह न हो जाये?