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वैशाख की सांझ बहुत उदास होती है

।। चंचल।। (सामाजिक कार्यकर्ता) आसना अपने ननिहाल आयी है. बहुत सुंदर है, पर उदास. चुन्नी लाल क लड़िका उसे गौर से देखता रहता है. उसका मन करता है, आसना के दुपट्टे को लेकर उसमें अपना मुंह छुपा ले. आंख बंद करके बैठा रहे. वह दौड़ कर गया और आसना के दुपट्टे में अपना मुंह छिपा […]

।। चंचल।।

(सामाजिक कार्यकर्ता)

आसना अपने ननिहाल आयी है. बहुत सुंदर है, पर उदास. चुन्नी लाल क लड़िका उसे गौर से देखता रहता है. उसका मन करता है, आसना के दुपट्टे को लेकर उसमें अपना मुंह छुपा ले. आंख बंद करके बैठा रहे. वह दौड़ कर गया और आसना के दुपट्टे में अपना मुंह छिपा लिया. आसना ने बस इतना ही समझा कि उसका दुपट्टा वहां से खिसक गया है, जहां के लिए वह बना है. उसने चुन्नी के लड़के को जोर से झटका और वह छटक कर महताब की बाहों में आ गया. महताब ने जोर की आवाज दी- पकड़ लिया. चुन्नी का बेटा ‘चोर’ हो गया. बाकी बच्चे जोर की ताली बजाने लगे. चुन्नी के बेटे को गुस्सा आ गया आसना पर. तरेर कर देखा और बोला- काली.. आसना की आंख डबडबा आयी. वह चुपचाप रोती, खड़ी रही.

चुन्नी बो सब देख रही थीं, क्योंकि वह दरवाजे पर बैठी चावल पसर रही थीं. सूप बगल रख के चुन्नी बो दौड़ीं और अपने बेटे को मारने लगीं- तैं बहुत गोर अहे. फूल अस बिटिया के काली कहबे? लड़के का मुंह झन्ना गया. आसना ने देखा कि हाथ फिर दुबारा उठ रहा है, वह दौड़ कर लड़के से चिपट गयी और उसे छिपा लिया- बच्चे को ऐसे मारते हैं मामी? चुन्नी बो ने अपने आंचल से आसना के आंसू पोछे और माफी मांगी- माफ करना बिटिया, अबोध है, काली कह दिया. आसना मुस्कुरा उठी- नहीं मामी! यह सब अचानक हुआ, तो हम घबरा गये, बस! काली तो हूं ही, इसके कहने से क्यों बुरा मानूंगी. क्यों फुदुक्कू! मेरा प्यारा भाई. फुदुक्कू का चेहरा खिल गया और वह बच्चों को पकड़ने भागा.

दोपहर की गर्मी और पछुआ हवा सम्मी के ओसारे तक आते-आते मखमली हो जाती है. माटी की लिपायी की महक से भरा ओसार बहुत राहत देता है. आसना और ताजो की दोपहरी यहीं कटती है. ताजो आसना के मामा सम्मी की बेटी है. आसना से छोटी है, मगर दोनों में गाढ़ी जमती है. दोनों एक ही चारपाई पर लेटी हैं. ताजो ने पूछा-एक बात बता दीदी- फुदुक्कुआ ने तुम्हें काली कहा, बुरा लगा न? नहीं रे. लड़िका के बात का क्या बुरा मानना. पर ताजो जिद करने लगी. आसना की आंख भर आयी-नहीं रे! बहुत दिन बाद किसी ने काली कहा. वह भी जब हमें प्यार करता, तो काली ही कहता था. उसका गला भर आया और वह ताजो से चिपट गयी. रोती रही. ताजो ने फिर कुरेदा- उसने तुम्हें छोड़ दिया? वह मत पूछ ताजो. उसे जिंदा बेकरी की भट्ठी में डाल दिया. हम चीख भी नहीं पाये. फूस के ढेर में दुबके हुए हमने सब देखा. रात-रात भर नींद नहीं आती.. और दोनों की दोपहरी बेकरी कांड में गुजर गयी.

वैशाख की सांझ बहुत उदास होती है. इत्ता बड़ा दिन काटे नहीं कटता. दोपहरी काट कर लोग बाजार आ जाते हैं सौदा-सुल्फी कम, हालचाल लेने ज्यादा. चिखुरी चौराहे से होते हुए उमर दरजी के पास आये हैं. एक खादी की बंदी ऐसी सिलो मियां की असाढ़-सावन तक चली जाये. और जदि उसके आगे चले तो? चिखुरी की बात पर कयूम ने टुकड़ा लगाया. चिखुरी ने जवाब दिया-तो समझो मियां की सावन बीतने के पहले सिलाई नकद. उमर ने उंगली से हिसाब लगाया. चार महीने? ई चार महीने हम हवा खाब? पूरी महफिल जुट गयी. कयूम उठे घर में से एक मौनी गुड़ लेकर आये. एक जजमान दे गया रहा. दानेदार गुड़ अहै भाई. जनता गुड़ का स्वाद लेने लगी.

अपने-अपने दुपट्टे में दुबकी ताजो और आसना को देख नवल उपाधिया ने पूछा- ई दुसरकी लड़की के हाव चचा? ई सम्मी क भांजी हाव. बड़ी दुखी है बेचारी. या खुदा ऐसी तकलीफ किसी को मत देना.. चिखुरी को याद आया. इसका गुजरात में बड़ा लंबा चौड़ा कारोबार रहा. ताजो! हियां आव त. ताजो इधर बढ़ आयी. आसना नीम की छांव में दूसरी तरफ मुंह कर के खड़ी रह गयी. चिखुरी ने जोर से आवाज दिया- उसे भी लेते आ बेटा. हमारी नातिन है जरा देख तो लें. इधर आने के लिए जब आसना मुड़ी तो कई आंखें नम हो गयीं.

यह गांव आसना का ननिहाल है. यहां हर कोइ आसना से जुड़ा है- मामा, नाना, नानी.. यही तो गांव की रूह है. आसना आकार खड़ी हो गयी. चिखुरी ने अपने पास बुलाया. जिस तखत पर बैठे थे, उसके बगल जगह बनाया- आओ बेटा इधर आओ. आसना ङिाझकी. उसकी ङिाझक को कयूम ने तोड़ा- शरमा मत बेटा! ये चिखुरी काका हैं, तुम्हारे नाना लगेंगे. आसना जाकर बैठ गयी. चिखुरी का दाहिना हाथ आसना के कंधे पर गया. वे दूसरी तरफ देख रहे हैं और उनकी आंख से पानी गिर रहा है. सन्नाटा है. अचानक आसना चिखुरी को पकड़ रोने लगी. चिखुरी भी फुक्का मार कर रोने लगे. हर आंख रोने लगी. आसमान सब देख रहा था. सूरज बस्वारी में जा छिपा. चिखुरी ने कहा- घबरा मत बिटिया! हम उसे आने नहीं देंगे. यह मुल्क गांधी का है, कसाई का नहीं.. नवल उपाधिया जाते-जाते बोले- वैशाख की सांझ बहुत उदास होती है..

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