16वीं लोकसभा के लिए देश में चल रही इस चुनावी जंग में प्रभात खबर में केवल अभिमत स्तंभ में जितने आलेख छपे, वो आम अवाम के पक्ष में आये. सत्ता वर्ग को बेनकाब करते हुए. उसकी असली मंशा को भांपते हुए. इस बार प्रत्यक्ष रूप में कंपनी सत्ता सामने आयेगी, इस अंदाज में ये आलेख आ रहे हैं. बाकी इस बार के चुनाव में मीडिया का कॉरपोरेटीकरण कॉरपोरेट की मीडिया का नंगा रूप भी सामने आया.
किसे कितनी सीटें मिलेंगी, कौन जीत रहा है, यह सब कुछ मीडिया वालों ने जैसे पहले ही तय कर दिया है. प्री पोल एनालिसिस और एग्जिट पोल के भौंडेपन पर चुनाव आयोग रोक क्यों नहीं लगाता? कांग्रेस और भाजपा को ही विकल्प के रूप में पेश करना, हर चुनाव में मीडिया की इस मानसिकता को इस देश की जनता वर्षो से ढो रही थी. क्या हो गया आम अवाम को? क्या अब भी राजनीतिक समझ से परे है इस देश की जनता? इस देश की मीडिया जनता के लिए नहीं है. तो ऐसी मीडिया को सरकार क्यों प्रोत्साहित कर रही है?
जनता को दिग्भ्रमित करनेवालों को तो खदेड़ देना चाहिए. आजादी के बाद इस 2014 में चरम नंगापन देखने को मिला. आम लोगों के बीच में इन्हें शर्म भी नहीं आती. ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि चौथे स्तंभ की मर्यादा का आज की हाइटेक मीडिया ने सत्यानाश कर दिया है. इन मीडियावालों के भ्रम में पड़ कर अगर जनता ने कंपनी सत्ता को चुन लिया तो ये कंपनियां गांवों से लोगों को खदेड़ेंगी. जल, जंगल, जमीन, पर्वत-घाटी सहित सब कुछ इन्हीं के कब्जे में होगा. लोग गांव-घरों से बेघर हो जायेंगे. तब ऐसी खुशी में मीडियावाले डांस पार्टी आयोजित करना भूल न जायें, क्योंकि फासिज्म थोड़ा हंसते-मुस्कुराते हुए आये, बाद में तो रोना है ही.
कालेश्वर गोप, रामगढ़