बेरहम आतंकवादी भोले-भाले नौजवानों को कट्टरता की तालीम देकर अपनी दहशतगर्दी को मजहब की खिदमत बताते हैं और नौजवान इनके गुमराहियों के शिकार होकर गुनाहगार बन बैठते हैं. चलो अगर यह आतंकवादी गैर इस्लाम वालों को खुद का दुश्मन बताते हैं, तो उन बहकने वाले नौजवानों को जानना चाहिए कि ये सिर्फ गैर इस्लाम के दुश्मन नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत और खुद अपने मजहब के भी दुश्मन हैं.
वरना ये मिस्र के मस्जिद पर हमला क्यों करते? पाकिस्तान की दरगाह पर हमला क्यों करते? यह न तो मजहब जानते हैं, न ही इंसानियत. इनकी फितरत सिर्फ खूनखराबा है.