17 अप्रैल को झारखंड में दूसरे चरण का मतदान होना है. इसमें सबसे बड़ी चुनौती खूंटी संसदीय क्षेत्र में है. ऐसा इसलिए, क्योंकि खूंटी जिले में चोरी, लूट, डकैती व अपहरण से ज्यादा हत्याएं हो रही हैं. आंकड़े कहते हैं कि खूंटी जिले में पांच साल में 498 लोग मारे गये. इनमें से अधिकतर हत्याएं उग्रवादियों ने कीं. खूंटी संसदीय क्षेत्र के हालात ऐसे हैं कि दिन में भी यहां प्रत्याशियों के प्रचार वाहन ग्रामीण इलाकों में निर्भय होकर नहीं जा सकते हैं. शाम छह बजे के बाद न प्रचार वाहन दिखते हैं और न प्रत्याशी.
सूचना तो यहां तक है कि एक प्रत्याशी ने उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ को अपने पाले में कर लिया है. पीएलएफआइ के उग्रवादी उस प्रत्याशी की गाड़ी से घूमते हैं. पुलिस के रिकॉर्ड में भी यह दर्ज है. अब स्थिति यह है कि सिर्फ उसी दल केप्रचार वाहन को क्षेत्र में घूमने की इजाजत है. अन्य वाहनों को उग्रवादी रोक रहे हैं. कार्यकर्ताओं को पीट रहे हैं. चुनाव प्रचार न करने के लिए धमका रहे हैं. हालात इतने बिगड़ गये हैं कि एक प्रत्याशी ने तो चुनाव आयोग से माहौल ठीक होने तक मतदान स्थगित करने की मांग कर डाली है.
खुफिया एजेंसियां लगातार रिपोर्ट कर रही हैं कि पीएलएफआइ के उग्रवादी एक प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने के लिए मतदाताओं को धमका रहे हैं. दरअसल कानून-व्यवस्था की स्थिति ने यहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर ही सवाल खड़े कर दिये हैं. वैसे मतदाताओं के मन से भय खत्म करने के लिए पुलिस अभियान चलाने का दावा कर रही है. पर इसका असर कहीं दिख नहीं रहा.
आज स्थिति यह है कि न प्रत्याशी सुरक्षित हैं और न जनता. अब खूंटी संसदीय क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना पुलिस-प्रशासन के लिए चुनौती बन गयी है. खूंटी में कानून का राज लाने के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई के साथ-साथ प्रतिबंधित संगठनों को करोड़ों देकर उन्हें मैनेज करनेवालों, उनके सहयोगियों पर भी कार्रवाई हो. साथ ही लोगों में सुरक्षा की भावना कैसे आये, इसका भी उपाय हो. चुनाव आयोग को भी इस संसदीय क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी, तभी यहां के लोग स्वतंत्र रूप से मतदान भी कर सकेंगे.