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नेपाल को फिर से ‘हिंदू राष्ट्र’ बनायेंगे!

।। पुष्परंजन।। (ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक) ‘हर-हर बम-बम/ संगठन मा शक्ति छ (संगठन में शक्ति है)/ हिंदू धर्म को जय/ नेपाल आमा को जय (नेपाल माता की जय)!’ नेपाल के गौरीघाट स्थित सोम सरला विद्याश्रम में नौ साल के बालक, सुशील ढुंगेल के मुंह से ऐसे नारे को सुनने के बाद आप अंदाजा […]

।। पुष्परंजन।।

(ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)

‘हर-हर बम-बम/ संगठन मा शक्ति छ (संगठन में शक्ति है)/ हिंदू धर्म को जय/ नेपाल आमा को जय (नेपाल माता की जय)!’ नेपाल के गौरीघाट स्थित सोम सरला विद्याश्रम में नौ साल के बालक, सुशील ढुंगेल के मुंह से ऐसे नारे को सुनने के बाद आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस देश की नयी पीढ़ी को किस वास्ते तैयार किया जा रहा है. यह स्कूल नेपाल के ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ द्वारा संचालित है, जिसके बारे में काठमांडो पोस्ट ने 4 मार्च, 2011 के अंक में जानकारी दी थी. इस बालक की बात को वहीं छोड़ते हैं, और आपको नेपाल के चतरा धाम बराह क्षेत्र के कुंभ मेले (1 अप्रैल, 2014) की ओर लिये चलते हैं, जहां विश्व हिंदू परिषद् के नेता अशोक सिंघल ने बयान दिया कि नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनते ही नेपाल को दोबारा से ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के लिए हम मुहिम छेडं़ेगे. विहिप नेता के बयान पर नेपाल में बहस छिड़ी है कि क्या इस देश को फिर से ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाना भाजपा का चुनावी एजेंडा है, या फिर इस तरह की घोषणा कर 1700 किमी की भारत-नेपाल सीमा के हिंदू मतदाताओं को अपने आईने में उतारने का प्रयास भाजपा समर्थक संगठन कर रहे हैं?

विहिप नेता अशोक सिंघल ने नेपाल में हिंदूवाद का अलख जगाने के लिए ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ की देखरेख में सात हजार ‘एकल विद्यालय’ खोलने, और इस देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारकों की संख्या बढ़ाने, की घोषणा चतरा धाम के कुंभ मेले में की है. पूर्वी नेपाल के धरान बाजार से कोई बीस किलोमीटर दूर, सप्तकोशी और कोका नदियों के संगम पर होनेवाला कुंभ मेला इस बार धार्मिक से अधिक राजनीतिक हो चला है. विष्णु के बराह रूप धारण करने की किंवदंती को लेकर यहां पर कुंभ मेला लगता है, जिसमें भारत-नेपाल के लाखों श्रद्घालु और संत समाज के लोग शरीक होते हैं. इस बार के ‘बराह चतरा महाकुंभ’ में नेपाल के भूतपूर्व नरेश ज्ञानेंद्र इसलिए पहुंचे, ताकि विष्णु के छद्मावतार को विहिप नेता, ‘हिंदू राष्ट्र अभियान’ की कमान सौंप दें. इससे पहले खबरें आती रहीं कि अशोक सिंघल, निजी रूप से पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र से दूरी बनाये रखना चाहते थे. उसके पीछे 1 जून, 2001 को, काठमांडो के नारायण हिट्टी दरबार में हुए हत्याकांड को प्रमुख कारण माना जाता है. लेकिन अब ऐसा क्या हुआ कि विहिप नेता सिंघल, ज्ञानेंद्र से संवाद बनाने को तैयार हो गये? पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र के पक्ष में राजनीति करनेवाले उनकी हालिया जयपुर और दिल्ली यात्र के हवाले से बताते हैं कि इस बार उनकी छवि सुधार कार्यक्रम में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. कुछ लोग यह बात जानते हैं कि नेपाल शाही परिवार के रिश्ते ग्वालियर से लेकर जयपुर, जम्मू और मयूरभंज राजघराने तक है. यही कारण है कि सत्ता के गलियारों में सशक्त भारतीय राज परिवारों से नेपाल के राजाओं को मदद मिलती रही है.

इसे ज्ञानेंद्र का सौभाग्य कहें कि उनके करीबी रिश्तेदार कांग्रेस और भाजपा की राजनीति के चंद ताकतवर चेहरे हैं. 28 मई, 2008 को राजतंत्र की समाप्ति के बाद चरचा थी कि माओवादी, ज्ञानेंद्र को महल से सड़क पर उतार कर मानेंगे, लेकिन, ज्ञानेंद्र को नारायण हिट्टी दरबार से नागाजरुन पैलेस भेज दिया गया. 66 साल के ज्ञानेंद्र को अब भी उम्मीद है कि नेपाल में ‘जय देश, जय नरेश’ का नारा एक बार फिर गुंजायमान होगा. इसकी वजह, 19 नवंबर, 2013 के संसदीय चुनाव में राजा समर्थक, ‘राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (नेपाल)’ का 24 सीट के साथ चौथे स्थान पर आना और गठबंधन सरकार में शामिल होना भी रहा है. 1991 के बाद, राजा समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के कई टुकड़े हुए. राप्रपा (चंद), राप्रपा (थापा), राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी जैसे दलों के बनने के बाद भी दरबारी नेताओं की निष्ठा में कमी नहीं आयी है. यह दिलचस्प है कि माओवादी नेताओं का एक खेमा पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र को शाही सुविधाएं देने का हामीदार रहा है. यहां तक कि नेपाली कांग्रेस में वरिष्ठ पद पर रहे देवेंद्र लाल नेपाली जैसे नेता मानते हैं कि 1990 से पहले के संविधान को फिर से लागू कर राजा की वापसी होनी चाहिए, इससे दक्षिण एशिया में स्थिरता का वातावरण बनेगा.

नेपाल में राजशाही की किलेबंदी के लिए हिंदू धर्म का बहुत सोच समझ कर इस्तेमाल किया गया. 1962 के संविधान में तत्कालीन राजा महेंद्र ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र के रूप में घोषित किया. उससे पहले 1913 में महाराजा चंद्र शमशेर, नेपाल को ‘प्राचीन हिंदू अधिराज्य’ कह कर संबोधित करते थे. लेकिन यह सवाल कोई नहीं पूछता कि नेपाल के शाहवंशी राजाओं को किस पुराण, आख्यान में विष्णु का अवतार माना गया है. नेपाली सत्ता से बाहर हुई राजशाही को अब भी लगता है कि 81.3 प्रतिशत हिंदू आबादी की धार्मिक भावनाओं को जगाये रखा जाये, तो 1990 से पहले की स्थिति वापस हो सकती है. यह उसी की कड़ी है कि राजा समर्थक माहौल बनाने के लिए सीमा आर-पार सक्रिय हिंदू ध्वजवाहकों को आर्थिक सहयोग दिया जाता रहा है. गौर करें, तो पता चलेगा कि सुनौली, गोरखपुर, रक्सौल, जयनगर, जोगबनी, सिलीगुड़ी रूपैडीहा, बनबासा जैसे सीमा पार के भारतीय क्षेत्र हिंदूवाद की नर्सरी बन कर रह गये हैं. इसके बरक्स, नेपाली सीमा पर इनसे दोगुनी तादाद में मदरसे खुले, साथ में चर्च भी.

1990 के दौर में शिवसेना नेपाल, विश्व हिंदू महासंघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों की गतिविधियां तेज करने के पीछे राजा समर्थकों का हाथ रहा है. 2005 में अशोक सिंघल के संकल्प को लोग अब भी याद करते हैं, जब वे महल बचाओ अभियान के अभिन्न अंग बन गये थे. क्या सिंघल जी सही कह रहे हैं कि अमेरिका और ‘यूरोपीय संघ’ के साझा षड्यंत्र के कारण 18 मई, 2006 को नेपाल, विश्व का एकमात्र ‘हिंदू राष्ट्र’ बना नहीं रह सका? शायद यह आधा सच है. इसका दूसरा पहलू यह है कि नेपाल को ‘सेक्यूलर स्टेट’ बनाने में चीन की बड़ी भूमिका रही है. दूसरा, नेपाल की जनता ‘हिंदू राष्ट्र’ के बहाने चल रहे दमन चक्र से भी दुखी थी. समय का फेर देखिये, अब तक माओवादी, तिरूपति से पशुपति तक ‘लाल कॉरिडोर’ की महत्वाकांक्षा पाले थे, और अब राजनीति के दूसरे ध्रुव पर आसीन अशोक सिंघल, सोमनाथ से विश्वनाथ होते हुए पशुपतिनाथ तक ‘भगवा कॉरीडोर’ बनाना चाह रहे हैं. क्या सिंघल जी ने कभी सोचा है कि ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयासों से पड़ोसी देश से संबंध बिगड़ भी सकता है?

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