चुनावों में फर्जी मतदान एक बड़ी समस्या है. हालांकि इस बार अपेक्षा थी कि चुनाव आयोग की सक्रियता और डिजिटल तकनीक के उपयोग से इस पर नियंत्रण पा लिया जायेगा. लेकिन एक न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन से कई चिंताजनक बातें सामने आयी हैं. इसमें दिल्ली व आसपास के इलाकों के कई स्थानीय चुनाव अधिकारी 1000-2000 रुपये प्रति व्यक्ति की दर से फर्जी मतदाता पहचान पत्र बनाने का सौदा करते दिख रहे हैं. यही अधिकारी मतदाता सूची तैयार करने से लेकर मतदान केंद्र की व्यवस्था देखने तक की जिम्मेवारी निभाते हैं.
इस स्टिंग में अधिकारी मतदान के समय अंगुली पर लगायी जानेवाली स्याही को नींबू के रस, पपीते और खास रसायन से छुड़ाने के गुर बताते भी नजर आ रहे हैं. स्याही छुड़ानेवाले रसायन के व्यापारी भी इसे बेच कर खूब कमाई कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार में मंत्री और देश के बड़े नेताओं में शुमार शरद पवार स्याही मिटा कर फर्जी मतदान करने की सलाह देने पर अब तक चुनाव आयोग को सफाई दे रहे हैं.
इस स्टिंग के वीडियो में दिख रहे वोट के ठेकेदारों की मानें, तो हर क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसे फर्जी वोटर हैं, जिनका नाम स्थानीय नेताओं से सांठगांठ कर सूची शामिल किया जाता है और चुनाव के वक्त उनकी बोली लगती है. वीडियो में हरियाणा के विवादास्पद मंत्री सुखबीर कटारिया ऐसे फर्जीवाड़े को कतई गलत नहीं मानते. कटारिया पर फर्जी मतदाताओं के बूते चुनाव जीतने का मुकदमा चल रहा है और अदालत इसकी जांच का आदेश दे चुकी है.
पर, कटारिया को इससे फर्क नहीं पड़ा है! एक तरफ फर्जी मतदाता अपने ठेकेदारों को चुनाव जिता रहे हैं, वहीं वास्तविक मतदाताओं की बड़ी संख्या चुनाव अधिकारियों की लापरवाही और स्वार्थ की वजह से मताधिकार के प्रयोग से वंचित रह जाती है, क्योंकि ऐन चुनाव से पहले उनका नाम मतदाता सूची से गायब हो जाता है. चुनाव आयोग को इस स्टिंग के आधार पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. साथ ही, यह भी जांच हो कि सही मतदाताओं के नाम गायब होने के पीछे कहीं फर्जी मतदाता बनानेवाले भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं का तो हाथ नहीं है. फर्जी मतदान लोकतंत्र के ‘अपहरण’ के समान है, जिसके खिलाफ तुरंत कड़े कदम उठाना जरूरी है.