देवयानी प्रकरण में भारत-अमेरिका संबंध कटुता की जिस हद तक जा पहुंचे थे, उसके मद्देनजर भारत में अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल का इस्तीफा तनिक भी आश्चर्यजनक नहीं लगता. वह अमेरिका की तरफ से भारत में नियुक्त पहली महिला राजदूत थीं.
दो साल पहले इसी अप्रैल महीने में जब उन्होंने पदभार संभाला था तो अमेरिकी सीनेट से संबद्ध विदेश मामलों की समिति को सौंपे हलफनामे में कहा था कि 21वीं सदी में सुरक्षा मामलों के लिहाज से भारत अमेरिका का अग्रणी साथी है. इन दोनों के संबंध लोकतंत्र के साङो मूल्यों की बुनियाद पर कायम हैं. सो वे दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगी.
लेकिन, दो साल की अवधि में नैंसी के कामकाज हलफनामे के अनुरूप नहीं रहे. भारत में राजदूत रहते उनकी अगुवाई में अमेरिकी दूतावास ने अमेरिकी विदेश मंत्रलय को जो तार भेजे, उससे दोनों देशों के संबंधों में खटाई पड़ती गयी. अमेरिका में देवयानी की विवादास्पद गिरफ्तारी के बाद नैंसी के कार्यालय से भेजे संदेश का आशय था कि भारत की प्रतिक्रिया तीखी नहीं रहेगी, क्योंकि यहां सरकार का ध्यान चुनावी तैयारियों पर है. लेकिन हुआ इसके उलट. गरमाते चुनावी माहौल में भारत ने देवयानी मामले में तीखी प्रतिक्रिया जतायी.
हालत यहां तक आ पहुंची कि भारत में पदस्थ अमेरिकी राजनयिकों को प्राप्त विशेषाधिकारों तक में कटौती हुई. इससे भारत-अमेरिका संबंधों में अप्रत्याशित कटुता आयी. इसके पहले, अमेरिकी प्रशासन द्वारा नरेंद्र मोदी के प्रति बहिष्कारवादी रवैये को जारी रखने के पीछे भी नैंसी की सलाह को अहम माना जा रहा था. गौरतलब है कि मोदी के साथ नये सिरे से सामान्य संबंध कायम करने में अमेरिका ब्रिटेन व यूरोपीय संघ से पीछे रहा. अपने विदेश विभाग के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के बाद ही नैंसी संबंधों को सामान्य बनाने के लिए मोदी से मिलने पहुंची.
ऐसे वक्त में, जब भारत में नयी सरकार बननेवाली हो, अमेरिका नहीं चाहेगा कि पुराने राजदूत के रहते पैदा हुईं गलतफहमियों की छाया भारत-अमेरिका संबंधों पर आगे भी कायम रहे. इस लिहाज से भारत के लिए भी नैंसी का इस्तीफा एक संतोष की बात है, क्योंकि भारतीय विदेश मंत्रालय को मई के बाद नियुक्त होनेवाले नये अमेरिकी राजदूत से नये सिरे से संबंध बनाने में मदद मिलेगी.